ग़ज़ल
ख्यालों में छुप छुप के आता है कोई
मुझे आज मुझसे चुराता है कोई
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मैं दर्पण जो देखूँ उसे ही निहारूं
निगाहों में ऐसे समाता है कोई
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करूँ साज श्रृंगार तो सोचती हूँ
धनक रंग मुझपर लुटाता है कोई
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भरम है मेरा या वो है मेरा साया
मुझे रात दिन यूँ सताता है कोई
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बढ़ी धडकने दिल की लगने लगा है
मुहब्बत का नगमा सुनाता है कोई
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निगाहें बिछाए मैं बैठी हूँ लेकिन
यहाँ पर न आता न जाता है कोई
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ये तन्हाइयां दे रहीं हैं सदायें
रमा आज मुझको बुलाता है कोई
रमा प्रवीर वर्मा