स्त्री
स्त्री चाहे घरेलू हो या कामकाजी
रसोई मिलती है उसे
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सडक पर भिडती है
अचानक से दो गाडियां
एक से निकलती है औरत
दूसरे से उतरता है आदमी
भीड से आती है आवाज
उफ ये औरतें क्यों चलाती हैं गाडियां
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देर रात घर लौटे बेटे को
सहानुभूति
और
स्त्री को मिलती है
प्रश्नों से भरी निगाहें
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स्त्री को लडना है भिडना है
टकराकर आगे निकलना है
इसी By Default से
कि जानती है वो
आखिरकार शक्ति का बिम्ब है वो
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और बदलना है उसे ही ये
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