कविता-अपेक्षाएँ
हाय इतनी अपेक्षाएँ, एक नन्ही जिंदगी,
किस अपेक्षा पर खरा उतरूँ ?
मित्रों की कुछ अपेक्षाएँ,
चाहतें कुछ प्रेमिका की,
कुछ मेरे दायित्व हैं –
माँ बाप के प्रति ।
देश का ऋण,
धर्म का ऋण,
जाति का ऋण,
कुछ मेरे दायित्व हैं-
संतान के प्रति ।
इतनी सारी बेदियाँ हैं, बलि की खातिर,
बता! किस पे कौन इच्छा बलि करूँ ?
दौड़ धन की ,
दौड़ यश की,
भूख की गति,
सफलता के अजनबी-
जटिल पथ हैं।
मील के पत्थर मिले बस,
मंजिले फिर कहाँ पर हैं ?
किसी ने पूछा नही-
सब दौड़ रत हैं ।
जिंदगी इस दौड़ मे-
मै भी हूँ शामिल,
देख! बचपन से आज तक गल रहा हूँ ।
जिस उमर से चलना सीखा चल रहा हूँ
तू बता विश्राम के कुछ बिन्दु मुझको,
थक गया हूँ, बहुत ज्यादा कहाँ ठहरूँ ।
हाय इतनी . अपेक्षाएँ…………………
— दिवाकर दत्त त्रिपाठी
मो -8840681440