गीतिका
कुछ पीड़ा के चित्र घनेरे।
उर के पट पे आज उकेरे।
मेरे दुख की रात न बीती,
जग में आये रोज सवेरे ।
मन की मीन बहुत उलझी है,
डाल न चारा , समय मछेरे !
एकाकी पथ नाप रहा हूँ,
बागी निर्णय थे सब मेरे ।
दीप अकेला कब तक लड़ता,
दुश्मन थे हर ओर अंधेरे ।
मुझसे उत्तर माँग रहे हैं,
प्रश्न खड़े हैं मुझको घेरे।
———–डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी