उद्धव गोपी संवाद
ज्ञान की योग की बातें हमें जो तुम सिखाते हो
समझ हम कुछ ना पाते है व्यथा मन की सुनाते है
हमारा मन नहीं वश में तुम्हे कारण बताते है
हमारा मन तो बसता है कमल नयनों में उन्हीं के
उन्हीं की तिरछी चितवन में मीठे बैनो में उन्हीं के
उन्हीं अधरों में मुरली में उन्हीं स्ंग रम से जाते है
हमारा मन नहीं वश में तुम्हे कारण बताते है
सुनो उद्धव सुनाते हैं…………………….
तरसती है मेरी अंखियां नयन दर्शन को प्यासे है
गए जब से मेरे प्रियवर सभी बैठे रुआंसे है
ह्रदय के सूने ये उपवन उन्हें वापस बुलाते है
हमारा मन नहीं वश में तुम्हे कारण बताते है
सुनो उद्धव सुनाते है…………………….
छोड़ जब से गए प्रियतम देह निष्प्राण रहती है
बनी बैरन लता कुंजे ना जगती है ना सोती है
देह तपती विरह से यूं लिपट चन्दन से जाते है
हमारा मन नहीं वश में तुम्हे कारण बताते है
सुनो उद्धव सुनाते हैं…………………….
अति मोहक मधुर वंशी हमें विस्मृत ना होती है
रैन नागिन सी ये काली हमे डसने को होती है
नंदनंदन की सब लीला नहीं हम भूल पाते है
हमारा मन नहीं वश में तुम्हे कारण बताते है
सुनो उद्धव सुनाते है हमें जो तुम बताते हो
ज्ञान की योग की बातें हमें जो तुम सिखाते हो।।