पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा – प्लूटोनियम

गागर में सागर समान इस पुस्तक में परमाणु ऊर्जा में प्लूटोनियम के उत्पादन प्रबंधन उपयोग आवश्यकता महत्व सुरक्षा पर विस्तार से सारगर्भित सटीक जानकारी मिलती है। यह पुस्तक इस भ्रम को भी तोड़ती है कि विज्ञान साहित्य हिन्दी में लिखना कठिन है। लेखक दोनों ही एवम् संपादक साधुवाद के पात्र हैं।
इस विषय पर शोध पत्र लिखने के लिए इस पुस्तक सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करने में सक्षम समर्थ सफल है। परमाणु ऊर्जा विभाग के हर पुस्तकालय में इसे अवश्य ही रखा जाना चाहिए। विज्ञान पत्रिकाएं इस पुस्तक की जानकारी पाठकों को प्रदान कर सशक्त माध्यम की भूमिका निभा सकती हैं। हिन्दी दिवस प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत करने के लिए यह पुस्तक एक अनमोल उपहार है। यूरेनियम के भंडार कम होने के कारण परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के अगले चरणों में थोरियम एवम् प्लूटोनियम महत्वपूर्ण योगदान देंगे। प्लूटोनियम के बारे में पाठक इस पुस्तक में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। परमाणु ऊर्जा पर हिन्दी में पुस्तकों की सूची में यह पुस्तक एक मील का पत्थर साबित होगी। विज्ञान साहित्य पढ़ने में रूचि रखने वाले लोगों के लिए यह पुस्तक एक मित्र की भूमिका निभाएगी।
पाठक फेसबुक वॉट्सएप सेल्फी स्मार्टफोन भूल कर इस पुस्तक में से ज्ञान के मोती चुनने में ही अपने समय का सकारात्मक सदुपयोग कर सकेगा यह मेरा विश्वास है। काश वाजपेई जी अपने जीवन काल में इस पुस्तक को देख पाते। यह पुस्तक प्रकाशित कर हिन्दी विज्ञान साहित्य परिषद मुंबई ने हम विज्ञान प्रेमियों पर उपकार किया है जिसके लिए धन्यवाद शब्द बहुत छोटा है। एक विज्ञान पाठक दिलीप का दिल से लेखकों की सशक्त कलम को नमन एवम् संपादक को साधुवाद।

समीक्षक — दिलीप भाटिया

लेखक —- देव दत्त वाजपेई एवम्  नरेंद्र सिंह राठौर
संपादक ——– कुलवंत सिंह
स्त्रोत ———– हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद मुंबई
ISBN ——— 978 – 93 – 86579 – 93 – 5
भाषा ———- हिन्दी
प्रकाशक ——–  आर . के . पब्लिकेशन मुंबई
मूल्य ——–  ₹   275, पृष्ठ ———-  169
उपलब्ध ——— अमेज़न पर
संपादक संपर्क ——— [email protected].

 

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी