पुस्तक समीक्षा – संस्कारों की पाठशाला
बच्चे मोबाइल टेलीविजन स्मार्टफोन सेल्फी वीडियो में उलझे हुए हैं। घर आए अतिथि को कहने पर भी नमस्ते नहीं करते। मम्मी के हाथ का बना भोजन नहीं खाना चाहते। मैगी पिज़्ज़ा बर्गर फास्ट फूड की फरमाइश प्रतिदिन रहती है। मम्मी पापा के अच्छी बात कहने पर भी कहना नहीं मानते। जिद करते हैं। सम्मान संस्कार अनुशासन समय का सार्थक सकारात्मक सदुपयोग उनकी ज़िंदगी में नहीं है। गलत शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। परिवार की परंपराएं उत्सव त्योहार उन्हें पसंद नहीं है। घर के कार्यों में मम्मी पापा की सहायता करना नहीं चाहते। प्रार्थना पूजा मंदिर मस्जिद प्राणायाम योग ध्यान को स्वीकार नहीं करते। इस प्रकार की अनेकों समस्याओं से वर्तमान समय में अधिकांश परिवार कोई समाधान नहीं निकाल पा रहे।
रायपुर के प्रदीप कुमार शर्मा जी नए पल्लव प्रकाशन पटना के माध्यम से 38 कहानियों की 114 पृष्ठों की ₹ 300 मूल्य की पुस्तक इन्हीं समस्याओं के समाधान के लिए लाए हैं । ISBN नंबर है 9788194444473 Email [email protected] पर उनसे संपर्क किया का सकता है। पौधारोपण अंधविश्वास संस्कारों की पाठशाला सेल्फी का सच प्यार रक्षा बंधन छोटी सी मदद जिद दोस्ती का कर्ज सुमति श्रवण कुमार अनुभव उपकार का बदला इत्यादि अनेकों ज्वलंत विषयों पर उनकी प्यारी प्यारी कहानियां पढ़कर बच्चे फोन वीडियो टेलीविजन सब भूल कर इस पुस्तक की अपना मित्र अपनी सहेली बना लेंगे। प्रत्येक कहानी के साथ चित्र भी है जो पाठक को पुस्तक पढ़ने के लिए आकर्षित करते हैं।
जन्म दिन पर अपने बच्चों को यह पुस्तक उपहार स्वरूप दीजिए। उनके जन्मदिन पर अतिथियों को भी रिटर्न गिफ्ट में यह पुस्तक भेंट कर कई परिवारों की समस्या का समाधान करने का पुण्य कार्य कर सकते हैं। शिक्षण संस्थानों के पुस्तकालय में
इस पुस्तक को सम्मिलित किया जा सकता है। बाल दिवस वार्षिक उत्सव इत्यादि अनेकों कार्यक्रमों के विजेताओं को यह पुस्तक पुरस्कार स्वरूप भेंट दी जा सकती है।
बच्चे एवम् इस समीक्षा के लेखक दिलीप अंकल आभारी हैं श्री प्रदीप अंकल के इतनी अच्छी पुस्तक के लिए। उनकी सशक्त कलम को नमन। बच्चे एवम् उनके दिलीप अंकल प्रदीप अंकल की अगली पुस्तक की प्रतीक्षा करेंगे ही। प्रणाम। इति।
समीक्षक — दिलीप भाटिया