शिक्षक दिवस
नई शिक्षा नीति में बहुत सारी बातें कहीं गई पर जिन कंधों पर देश के कर्णधारों को शिक्षा देने की जिम्मेवारी है उनके वेतन भत्ते और अन्य सुविधाओं के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया है। एक ही देश के अंदर विविध प्रकार के शिक्षक और उन्हें दी जाने वाली सुविधाएं एवं वेतनमान लागू है इस स्थिति में उन शिक्षकों से किस प्रकार की उम्मीद किया जा सकता है जिन्हें अपने बगल वाले शिक्षक से भिन्न सुविधा और वेतन प्राप्त होता है।एक देश के अंतर्गत शिक्षकों के लिए एक ही राज्य में अनेक प्रकार के वेतनमान लागू उन्हें विविध प्रकार के नाम दिए गए। जब तक इन सब मामलों में एकरूपता नहीं लाया जाएगा सबसे तक उनसे विशेष परिणाम की उम्मीद करना हमारे समझ से बेमानी होगा। हर विभाग में यहां तक के स्थानीय निकाय के प्रतिनिधियों विधायक सांसद मंत्रियों के वेतन भत्ते एवं अन्य सुविधाओं में प्रतिवर्ष बढ़ोतरी किया जा रहा है।वहीं दूसरी ओर शिक्षकों को पहले से मिल रही सुविधाओं में प्रतिवर्ष कटौती किया जा रहा है।यहां तक की शिक्षकों के वर्तमान पदों को ही समाप्त किया जा रहा है।ताकि उनकी जगह पर न्यूनतम वेतनमान पर शिक्षा देने के लिए लोगों को रखा जाए।इससे तो शिक्षकों की संख्या में बढ़ोतरी अवश्य होगी पर शिक्षा और शिक्षक के गुणवत्ता में कतई सुधार नहीं हो सकता।जिन शिक्षकों के कंधों पर पहले सिर्फ शिक्षा देने की जिम्मेवारी होती थी आज उन्हें नाना प्रकार के गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाता है इससे भी शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है और शिक्षक के आत्मबल को ठेस पहुंचता है।
बिहार सरकार और बिहार के शिक्षा मंत्री के हालिया बयानो से साबित होता है कि सरकार शिक्षकों के आत्म सम्मान को ठेस पहुंचाने के मनसा से काम कर रही है।राज्य सरकार और शिक्षा मंत्री हर दिन कोई न कोई तानाशाही फरमान जारी कर शिक्षकों के मौलिक अधिकार का दमन कर रहे हैं।पटना उच्च न्यायालय के द्वारा समान काम समान वेतन के शिक्षकों की मांग के हक में फैसला आने के बाद सरकारी मशीनरी के सहायता से शिक्षकों के हक को किसी कीमत पर नहीं देने देने के लिए राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और वहां मनगढ़ंत दलीलें पेश कर और आर्थिक कमजोरी के हवाला देकर पटना उच्च न्यायालय के फैसले को बदलवाने में सफल रही।सरकार के पास विभिन्न वोट हासिल करने वाले योजनाओं के लिए धन है।लेकिन राष्ट्र निर्माता शिक्षकों के लिए केंद्र और राज्य सरकार के पास पैसों का अभाव है।आज भी देश में लाखों शिक्षकों को न्यूनतम मजदूरी के बराबर भी वेतन नहीं मिल पा रहा है।
बढ़ती कमरतोड़ महंगाई बदलता जीवन शैली और शिक्षा स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं के लिए खर्चे जुटाना शिक्षकों के लिए पहाड़ तोड़ने के बराबर हो गया है।राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में शिक्षकों के वेतन में सम्मानजनक बढ़ोतरी का जो भरोसा दिया गया वह भी आज तक पूरा नहीं किया गया।इससे साबित होता है सरकार शिक्षकों के साथ न्यायोचित व्यवहार नहीं कर रही है।
जब शिक्षक अपने वाजिब मांग को लेकर आंदोलन करना चाहते हैं तो सरकार उन्हें आंदोलन करने से रोकने के लिए छुट्टी रद्द करने के फरमान जारी कर देती है।इतना ही नहीं आंदोलन के लिए शिक्षक संगठनों द्वारा मांगे गए आंदोलन स्थल शिक्षकों को नहीं दिया जाता है।बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ गोप गुट राज्य सरकार से पूछना चाहती है क्या सरकार शिक्षकों के वेतन में कटौती के साथ ही शिक्षकों को संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार से भी वंचित करने का प्रपंच रच रही है।क्या अब बिहार में अपने अधिकारों के लिए धरना प्रदर्शन जुलूस भूख हड़ताल तालाबंदी करना कानूनन अवैध कर दिया गया है? एक तरफ केंद्र और राज्य सरकार अपने सांसदों विधायकों के वेतन भत्ते और और सुविधाओं में बढ़ोत्तरी खुद-ब-खुद मेज थपथपा कर कर लेती है।दूसरे और कर्मचारियों के वेतन बढ़ोतरी करने में आनाकानी कर रही है।शिक्षकों को समय पर प्रोन्नति नहीं दिया जा रहा है और नहीं समय पर वेतन का भुगतान किया गया रहा है।वर्ष में शायद ही कोई ऐसा महीना हो जब शिक्षकों को लगातार वेतन समय पर मिला हो।आज तक शिक्षकों का सातवें वेतन आयोग के आलोक में हुए वेतन वृद्धि से मिलने वाला एरियर का भुगतान शत प्रतिशत नहीं किया गया है।एनआईओएस के द्वारा प्रशिक्षित किए गए नवनियुक्त शिक्षकों को ग्रेड पे का लाभ नहीं पूरी तरह से नहीं मिल रहा है।इससे शिक्षकों को हर माह कई हजार रुपयों का घाटा हो रहा है।शिक्षा विभाग में कार्यरत कर्मचारी सरकार के आदेश को धत्ता हुए वेतन और एरियर संबंधी फाइलों पर इस कदर बैठ गए हैं कि उन्हें वहां से हटाना मुश्किल हो गया है।जिसका खामियाजा शिक्षकों को आर्थिक संकट के रूप में झेलना पड़ रहा है।साथ ही से सरकार के प्रति शिक्षकों में व्यापक नाराजगी का भाव फैल रहा है।बकाया वेतन के नाम पर शिक्षा विभाग के कार्यालयों में वसूली का नंगा नाच चल रहा है और सरकार आंख मूंदकर सो रही है। शिक्षकों को अपने ही वेतन भत्ते और बकाया के लिए दर-दर की ठोकरें खाना पड़ रहा है।
एक तरफ सरकार शिक्षकों को 5 सितंबर शिक्षक दिवस के महिमा के बारे में आगाह करती है दूसरी ओर उनका आर्थिक और मानसिक शोषण कर रही है।क्या सरकार द्वारा चुने गए 10-12 शिक्षकों के सम्मान मिलने से लाखों शिक्षकों के घर में चूल्हा जलने लगेगा या उनके बच्चों को उच्च और तकनीकी शिक्षा हासिल करने के लिए पैसों का जुगाड़ हो जाएगा।
आज तक शिक्षकों को अवकाश प्राप्त करने के बाद पेंशन देने के लिए यूटीआई के द्वारा जो पेंशन खाता खोलना था उसे खुलवाने में नाकाम रही।अगर समय से शिक्षकों को सम्मानजनक वेतन प्रोन्नति समय से वेतन बढ़ोतरी व अन्य सुविधाओं का लाभ दिया जाए तो शिक्षक खुद ही आंदोलन की तरफ रुख नहीं करेंगे,और अपने मूल्य कार्य शिक्षण पर पूर्ण ध्यान दे सकेंगे।
सरकार अगर अपने जिम्मेवारी से भागते रहेगी तो शिक्षक के पास आंदोलन के सिवा कोई विकल्प नहीं है।क्योंकि हम सब जब पटना उच्च न्यायालय में समान काम समान वेतन के हक में निर्णय प्राप्त करने में सफल रहे थे।लेकिन दुर्भाग्यवश सरकार द्वारा इस निर्णय को चुनौती सर्वोच्च न्यायालय में दिया गया जहां सरकार के द्वारा प्रस्तुत की गई मनगढ़ंत दलीलों को जवाब देने के लिए हमारे शिक्षक संगठनों के पास पैसों के अभाव होने के कारण अच्छे कानून विशेषज्ञ खड़ा करने में असफल रहे।जिसके कारण सर्वोच्च न्यायालय से हमारे हक में फैसला नहीं आ सका।सरकार से हम मांग करते हैं सर्वप्रथम सरकार द्वारा जो शिक्षकों के विभिन्न प्रकार का वर्गीकरण किया गया है उसे समाप्त करते हुए शिक्षकों के लिए एक समान पद का सृजन किया जाए।जिससे शिक्षकों के बीच समानता का भाव उत्पन्न हो सके।इसे करने के लिए किसी भी प्रकार के वित्त की आवश्यकता नहीं होगी।एक ही विद्यालय में पंचायत शिक्षक,प्रखंड शिक्षक,शिक्षामित्र,टीईटी शिक्षक,बीपीएससी बहाल शिक्षक,नियमित शिक्षक इत्यादि कई प्रकार के शिक्षक पाए जाते हैं।जिससे शिक्षकों के बीच एक अलग तरह की भावना उत्पन्न होता है।यद्यपि सभी शिक्षकों से एक ही प्रकार के काम लिया जाता है उन्हें एक ही प्रकार के जांच अधिकारियों का सामना करना पड़ता है उन्हें सरकार के हर निर्णय के आलोक में काम करना पड़ता है,फिर शिक्षकों के नाम अलग-अलग के क्यों ?
केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत नई शिक्षा नीति अनेक खूबियों से युक्त है लेकिन इन खूबियों को धरातल पर उतारने के लिए अच्छे शिक्षकों की जरूरत होगी।जो शिक्षक मानसिक सामाजिक और आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे वही शिक्षक समृद्ध समाज और राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। भूखे किसान और मजदूर कभी अपने पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं कर पाते उसी तरह से असंतुष्ट शिक्षक भी अपने पूर्ण क्षमता के उपयोग करने में नाकाम साबित हो रहे हैं।अगर केंद्र और राज्य सरकार नई शिक्षा नीति की खूबियों को धरातल पर उतारकर बेहतर परिणाम हासिल करना चाहती है तो शिक्षकों के चिर परिचित मांग पर विचार करते हुए एक देश एक समान शिक्षा शिक्षक और वेतनमान की सुविधा लागू किया जाना चाहिए।
अतः केन्द्र और राज्य सरकार से अनुरोध है,शिक्षकों के उचित मांगों पर विवेकपूर्ण विचार करे और एक विद्यालय में एक प्रकार के शिक्षक और एक प्रकार की वेतन देने का प्रबंध करे।यही देश के तमाम शिक्षकों के लिए सबसे बड़ा सम्मान होगा।
— गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम