लघुकथा

स्वर्ग

बेटे, मैं तुम्हारे मामा के घर जा रही हूँ।क्यों माँ, तुम आजकल मामा के घर बहुत जा रही हो? क्या आपको अपने परिवार की बहुत याद आती हैं?माँ चुप थी,वह माँ के चेहरे के भावों को देख कर बड़ा हैरान था।ठीक हैं, माँ अगर तुम्हारा मन मान रहा तो चली जाओ।माँ तुम्हारे पास पैसे तो हैं ना।माँ अब भी चुप थीं।पर बेटे का मन नहीं माना।माँ तुम ये पैसे रख लो।तुम्हारे काम आ जाएगे।अच्छा माँ चलता हूँ,नही तो मालिक बहुत नाराज हो जाएगा।
माँ का मन भर आया,उसे आज अपने दिए संस्कार लौटते नजर आ रहे थे।जब रवि,स्कूल जाता था।वह माँ से जेब खर्च लेने में हमेशा हिचकता था,क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी?पिता जी मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से घर चला पाते थे।पर माँ फिर भी उसकी जेब में कुछ सिक्के डाल देती थीं।वह बार-बार मना करता था।
पिता जी, माँ को हमेशा कहते थे।तुम इसे बिगाड़ कर ही मानोगी।पर माँ हमेशा हँस कर टाल जाती थी।अब तो पिता जी ने भी कहना छोड़ दिया था।पर माँ का बार-बार मामा, चाचा के घर जाना उसे पसन्द नहीं आ रहा था।वह इसी उधेड़बुन में लगा रहता।पत्नी का स्वभाव भी उसकी माँ की तरफ कुछ खास अच्छा नहीं था।वह रोज कहासुनी करती थी।उसे टोका-टाकी पसन्द नही थी।
एक दिन उसने माँ का पीछा किया।आखिर माँ को मामा के घर जाने की इतनी जल्दी क्यों रहती हैं?वह चुपचाप माँ के पीछे चल पड़ा।वह यह देख कर हैरान रह गया कि माँ तो मामा के घर जाती है नहीं है।वह तो स्टेशन पर एकान्त में एक पेड़ के सहारे घण्टो बैठी रहती थी।उसका मन टूट गया।पास खड़े एक बजुर्ग,जो यह सब देख रहा था।बोला बेटा,क्या देख रहे हो? जी!अच्छा तुम उस बूढ़ी औरत को देख रहे हो।वो यहाँ अक्सर आती है और घण्टो पेड़ तले बैठ कर साँझ ढले अपने घर लौट जाती हैं।अच्छे घर की लगती हैं।बेटे,जब घर में बड़े-बुढ़ों का प्यार नही मिलता,उन्हें बहुत अकेलापन महसूस होता हैं तो वे यहाँ-वहाँ बैठ कर अपना समय काट देते हैं।
बेटे,क्या तुम्हें पता है?बुढ़ापे में इन्सान का मन बिल्कुल बच्चे जैसा हो जाता है।उस समय उन्हें अधिक प्यार और सम्मान की जरूरत पड़ती हैं।पर परिवार के सदस्य इस बात को समझ नहीं पाते,वो यहीं समझते हैं इन्होंने अपनी जिंदगी जी ली है।इतना कह कर वह बजुर्ग चला गया।
रवि,घर चला आया।उसने किसी से कुछ नहीं कहा।जब माँ लौटी, वह घर के सभी सदस्यों को देखता रहा।किसी को भी माँ की चिन्ता नहीं थी।उसने भी अपनी पत्नी औऱ बच्चों से बोलना बन्द कर दिया।सभी बड़े परेशान हो उठे।पत्नी,बच्चे इस उदासी का कारण जानना चाहते थे।
रवि ने अपने परिवार को अपने पास बिठाया।उन्हें प्यार से समझाया कि मैंने तुम से चार दिन बात नहीं की, तुम कितने परेशान हो गए।अब सोचों तुम माँ के साथ ऐसा व्यवहार करके उन्हें कितना दुःख दे रहे हो?सभी को अपने बुरे व्यवहार का खेद था। जैसे ही माँ, शाम को घर लौटीं।सभी बच्चे उनसे चिपट गए।अब घर का माहौल पूरी तरह बदल गया था।रवि,पत्नी और माँ को एक साथ बैठे देखकर जोर से बोला।माँ,क्या बात आजकल मामा के घर नहीं जा रही हो ?नही बेटे अब तो अपना घर ही स्वर्ग लगता हैं।सच माँ।

राकेश कुमार तगाला

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