कहानी- गलतफहमियां
एक महोदय पार्टी में सीना चौड़ाकर कर बोल रहे थे कि मेरा बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है। पास में खड़े अन्य लोग उनकी बातों को सुन रहे थे, तभी एक दूसरे व्यक्ति ने किसी से पूछा कि शर्मा जी आपका बेटा भी तो किसी कंपनी में काम करता है? शर्मा जी ने जवाब बड़े हिचकिचाते हुए दिया कि हां एक छोटी कंपनी है, जिसमें वह काम करता है। पर इतना कमा लेता है कि वह अपना और परिवार का खर्च चला सके। वह पहला व्यक्ति हंस दिया, बोला- मेरा बेटा तो एक महानगर में है और एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है, अच्छा कमा लेता है। शर्मा जी कुछ शर्मिंदा से हो गए,
घर आए और बेटे को फ़ोन किया बोले कि- आज एक महोदय मिले थे जिनका बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है, अच्छा खासा कमा लेता है, तुम क्यों नहीं किसी बड़ी कंपनी में जॉब के लिए कोशिश करते हो और कि किसी अच्छे बड़े शहर में तुम्हें नौकरी मिल जाए। बेटा शांत रहा क्योंकि वह जानता था कि जो चीज दिखती है, वास्तव में वह होती नहीं है। बेटे ने हां में जवाब देकर बात को टाल दिया।
लेकिन शर्मा जी के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उनका बेटा एक छोटी कंपनी में काम करता है और मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले सीना चौड़ा कर के बोलते हैं मेरा बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है, अच्छा खासा कमा लेता है।
कुछ दिनों बाद फिर से शर्मा जी ने अपने बेटे को यह बोला- बेटे ने फिर से उनकी बात को अनसुना कर दिया। शर्मा जी से रहा नहीं गया और कुछ दिन छुट्टियों के बहाने वह अपने बेटे के पास रहने को आ गए। उन्होंने देखा कि भले ही बेटा छोटे शहर में है लेकिन उसके पास जरूरत का सारा सामान है, उसकी कमाई इतनी है कि वह खर्च करने के साथ-साथ बचा भी लेता है। लेकिन वह संतुष्ट नहीं हुए, उन्होंने फिर से उससे वही बात बोली। इस बार बेटे ने समझ लिया कि हर बार अनसुना करने से कोई फायदा नहीं होने वाला पापा के दिमाग में यह बात घर कर गई है कि मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाला व्यक्ति ज्यादा सुखी जीवन यापन करता है।
शर्मा जी किसी ना किसी बात को लेकर अपने बेटे को बार-बार किसी बड़ी कंपनी में जॉब करने के लिए बोलते रहे, बेटे के दिमाग में यह बात आ चुकी थी कि उसके पिता को गलतफहमी हुई है। उसने अपने एक दोस्त को बुलाया जो मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था, छुट्टियां थी इसलिए वह घर आया था और वह मिलने के लिए भी आ गया तो शर्मा जी बड़े खुश हुए मेरे बेटे के दोस्त मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं तो उसे भी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने का मौका मिल सकता है। शर्मा जी ने अपने बेटे के दोस्त से कई सवाल किए जिनका जवाब उसने दिया कि अंकल आपका बेटा बहुत अच्छे से रह रहा है, यहां पर जितना खर्च करता है उतना बचा भी लेता है। हम लोगों की खर्च बहुत ज्यादा है और बचा बहुत कम पाते हैं क्योंकि किसी बड़े शहर में रहना उतना ही महंगा होता है जितना किसी छोटे शहर में सस्ते में रहना।
शर्मा जी यकीन करने को तैयार नहीं हुए, दोस्त ने बताया भी कि लोगों की मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने को लेकर बड़ी गलतफहमीयां है। दोस्त के जाने के बाद शर्मा जी ने अपने बेटे को कहा- यह तुम्हारा सच्चा दोस्त नहीं है क्योंकि यह नहीं चाहता कि तुम किसी बड़ी कंपनी में काम करो इसलिए तुम्हें बहका रहा है। बेटे को पिता की आंख पर बंधी गलतफहमी की पट्टी साफ दिखाई दे रही थी। अगली बार बेटे ने अपने साथ काम करने वाले एक दोस्त को बुलाया जो पहले एक बड़ी कंपनी में काम करता था, इस बार शर्मा जी ने कई बातें की कई सवाल जवाब हुए लेकिन उन्हें जवाब वही मिला जो पहले दोस्त ने दिया था, शर्मा जी को थोड़ी असलियत समझ आना शुरू हुई।
शाम को टहलने के बहाने शर्मा जी घर से निकल जाते और जॉब करने वाले लोगों से पूंछते कि उन्होंने मल्टीनेशनल कंपनी में काम क्यों नहीं किया? किसी का जवाब रहता कि जॉब नहीं मिली, किसी का जवाब रहता कि मेरे पास इतनी अच्छी डिग्री नहीं है। कोई कहता कि वह घर से दूर नहीं जाना चाहता तो कोई कहता की नौकरी से ज्यादा अच्छा बिजनेस है, नौकरी छोड़कर मुझे बिजनेस करना है लेकिन वह जवाब नहीं मिलता जिसकी शर्मा जी को तलाश थी।
कई दिन गुजर गए फिर एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाला लड़का जिसे महीने का अस्सी हज़ार मिलता था, वह नौकरी छोड़ कर अपने शहर वापस आया था और यहां पैतीस हजार में काम कर रहा था। शर्मा जी को बड़ा आश्चर्य हुआ उन्होंने उससे पूंछा कि आधे से भी कम सैलरी में तुम काम क्यों कर रहे हो यहां पर? तब उसने कहा अस्सी हज़ार कमाना आसान नहीं है, नौ घंटे का बोलकर दस से बारह घंटे काम करना पड़ता है और खर्चा पानी निकाल लो तब भी इतना नहीं बच पाता जितना मैं पैतीस हजार में बचा लेता हूं। यहां मेरा घर है तो किराया बच जाता है, परिवार साथ है तो बोरियत नहीं होती है। कोई बड़ा खर्च है नहीं तो महीने का पंद्रह से बीस हजार रुपए बचा लेता हूं जो अस्सी हजार रुपए मिलने पर भी नहीं बचा पाता था, क्योंकि किसी बड़ी कंपनी में काम करना यानी किसी बड़े शहर में जाकर बसना और वहां पानी भी पैसों से मिलता है। इसलिए मैं खुश हूं कि अपने परिवार के बीच में रहकर मैं अपने भविष्य के लिए कुछ पूंजी जमा कर पा रहा हूं।
शर्मा जी बहुत आश्चर्यचकित हुए अब उन्हें समझ में आने लगा कि उनका बेटा क्यों किसी बड़ी कंपनी में काम करने से मना करता है? काफी सोच विचार कर शर्मा जी ने फैसला लिया कि वह अपने बेटे को अब नहीं कहेंगे कि वह इस शहर को छोड़कर किसी बड़े शहर में जाकर बसे, किसी बड़ी कंपनी में काम करें क्योंकि जिंदगी उसकी है और वह स्वयं फैसला ले यही बेहतर है।
— जयति जैन “नूतन”