किसान
‘सिर्फ भाग-दौड़ भरी जिन्दगी, जिन्दगी नहीं होती साहब! जिन्दगी के कुछ वसूल है, कुछ सिद्धान्त है, जिन पर चलना और ढलना भी जरूरी है, और इतना ही नहीं साहब! साल के बारहों महीनें, छ: की छ: ऋतुएँ, तीनों मौसम की मार झेलने के बाद सुख दुख से लड़ना भी एक जीवन है, और यही जीवन जीने की कला एक जिन्दगी’, कन्धे से हल उतारकर, सिर का पसीना पोछते हुए शत्रुघन चच्चा नये-नये बने सिंचाई विभाग के अभियंता सिद्धार्थ बाबू से बोल गये। शत्रुघन चच्चा के पास सब कुछ है पर वो श्रम को जितनी तवज्जों देते है उतनी किसी चींज को नहीं। पेशे से एक किसान है, किसान कहना उचित नहीं है मेरी समझ से परिश्रमी किसान कहे तो गलत न होगा।
इधर सिद्धार्थ बाबू को अभियंता हुए लगभग सात से आठ महीने ही हुये थे कि उनको गर्मी में गर्मी और ठण्डी की ठण्ड बर्दास्त नहीं होती थी, बरसात तो भूल ही जाईये..साहब, सुट-बुट छोडिये, काले जुते पर अगर धुल की हल्की परत भी दिख जाती तो दिक्कत हो जाती थी। इन सबसे बचने के लिए चार पहिया गाड़ी ले रखे थे, जिसमें गर्मी में बैठो तो श्रीनगर और ठण्डी मैं बैठो तो महाराष्ट्र गोवा का मौसम याद आता था।
खैर छोड़िये ये सब, सिद्धार्थ बाबू को शत्रुघन चच्चा की बात जमी नहीं, उन्होंने तड़के जवाब दे दिया…., हैय… ऐसा भी होता है क्या?? अरे चच्चा आप फालतू में लगे रहते है मौसम की मार झेलने और सुख दुख का पहाड़ काटने में। अरे चच्चा! अब टैक्टर का जमाना है टैक्टर का। ये हल और बैल छोड़िये, आखिर कब तक इन सबको लेकर परेशान होते रहेगें, टैक्टर से खेत की जुताई जल्दी हो जाती है जल्दी… और हाँ.., आपको इतना परेशान होने की जरूरत नही है, मजे में रहेगें बिल्कुल मजे में। शत्रुघन चच्चा को यह बात जमी नहीं। पास बुला कर सिद्धार्थ को बोले, बेटा तू मेरे पास थोड़ी देर बैठ सकता है तो बैठ नहीं तो कोई बात नहीं है, जा सकता है।
इतना कहकर शत्रुघन चच्चा सिर पर बँधी पगड़ी नीचे रखकर पानी की भरी बाल्टी से एक लोटा पानी उठाकर चेहरा धुले फिर पानी पीने लगे। इधर ना जाने क्या सोच कर आज सिद्धार्थ बाबू पॉच महीना बाद गॉव के किसी किसान के पास उसकी बाते सुनने के लिए बैठ गये। शत्रुघन चच्चा देख हैरान थे पर अपने आश्चर्य भाव को शान्त करते हुए बोले- बाबू! तुम किसी किसान का दर्द नहीं जान पाओगें, अगर जानना ही है तो बस एक दिन तुम खेत में रहकर देख लो।
सही बात है बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद। अब सिद्धार्थ बाबू सिंचाई अभियंता तो हो गये थे पर कभी अपने बाबू जी के साथ भी खेतों में नहीं गये, तो क्या जानेगें खेतों का हाल। शत्रुघन चच्चा पुरे साल घर से लेकर खेत तक ही रहते थे। कभी कभार खेत के लिए कुछ जानकारियाँ तो कभी बीज तो कभी उर्वरक इत्यादि की जानकारी लेने बाजार चले जाते थे, तो कभी घर के किसी कार्य से। एक दिन तो गज़ब ही हो गया, शत्रुघन चच्चा गये उर्वरक केन्द्र पर। (कभी खेतों में उर्वरक का प्रयोग करते नहीं थे पर दूसरों की फसल की हरियाली देख कर रहा नही गया) गये तो देखे लम्बी लाईन लगी हुयी थी, ये भी कतारबद्ध खड़े हो गये। कतार में बाईसवें नम्बर पर थे, दिन के दस बजे, उधर सुर्य देवता सिर पर चढ़ते मडराते धीरे-धीरे तेज होते जा रहे थे तो इधर गोदाम से उर्वरक की बोरी मिलनी शुरू हुयी। चच्चा कतार में खड़े अपनी बारी की प्रतिक्षा करते रहे|
सूबह से शाम हो चली थी, सैकड़ो बोरी उर्वरक गोदाम से जा चुकी थी पर चच्चा का नम्बर नहीं आया। कतार में खड़े लोगों का कोलाहल बढ़ना शुरू हुआ। कोलाहल देख उर्वरक समीति के लोग परेशान हो गये और कतार के लोगों को गलत तरीके छोड़ उर्वरक देना शुरू किये..। शत्रुघन चच्चा का नम्बर आया, उर्वरक की कीमत सात सो पचहत्तर रूपये थी एक हजार की मांग देख चच्चा आहत हो गये, फिर बहुत गुस्सा हुये, दो चार अपनी सांस्कृतिक भाषा में समीति के लोगों को श्लोक सुनाये तो आठ सौ रूपये में बोरी का रेट लग गया। चच्चा उस दिन तो लेकर उर्वरक आ गये। फिर दूबारा कभी लेने गये नहीं। यह कहानी सुना ही रहे थे कि सिद्धार्थ बाबू बोल पड़े – चच्चा! ये हमें क्युँ सुना रहें हैं आप?? चच्चा बिना कुछ जबाब दिये बताते रहे। बेटा शिकायत करने पहूँचा इस बात की तो कोई सुनने को तैयार नहीं, ऐसे तैसे कर के शिकायत दर्ज करा दी पर आज तीन साल हो गये कोई जवाब नहीं आया।
और आगे सुन बेटा, तेरे सिंचाई बिभाग वाले जो अफ्सर है ना ?? वर्मा जी, उहो कुछ सुनते नहीं है अपने मन की ही करते है, नहर में पानी तो कभी टाईम पर छोड़ ही नहीं सकते है, ट्युबेल से काम चलाना पड़ता है। ट्युबेल के डीजल का दाम बढ़ता देख कलेजा फट के बाहर आने लगता है। मजदूर भी अपनी मजदूरी बढ़ा दिया है, सरकार भी डीजल के दाम आये दिन बढ़ाती रह रही है। खेती-बारी वाली कम्पनी चलावे वाले लोग और ओ कम्पनी के सामान बेचने वाले लोग एक किसान का दर्द क्या जान पायेगे?? कितना दर्द कितने दिन दाना-पानी छोड़ने के बाद लोगों के खाने के दाना-पानी मिलता है। किसान सहायता केन्द्र वाले भी कोई सुनवाई नहीं करते बेटा! सब मनमाना घुम रहे।
और हाँ… बेटा! तुम जिस टैक्टर की बात कर रहे थे ना उस टैक्टर को चलाने वाले के पास भी टाईम नहीं है। दस बार जाओ तो एक बार आता है। और तो और द्वार पर खड़े इन पशुओं को देखों, ये सब उसी खेत के बलबूते जीवित है जिनको तुम दूसरों के भरोसे छोड़ने को कह रहे। अगर सब को जोड़े तो किसानी फायदे का सौदा नहीं है। शत्रुघन चच्चा अभी समस्याओं की गणना करा ही रहे थे की ब्यास चाचा आ गये और बोल पड़े : क्या शत्रुघन किसी से भी शुरू हो जाता है, अरे किसान हम है, किसानी के दुख-दर्द हमसे कहो, हम न समझ पायेगें? जो किसानी और किसान को कुछ समझता ही नहीं है उसके सामने रोने-गाने से क्या होगा रे???
ब्यास चाचा की उस समय का कथन बिल्कुल अर्ध वृत्त के ब्यास के माफिक शत्रुघन चच्चा और सिद्धार्थ बाबू को बिल्कुल समान रूप से आधे-आधे गोले में बिभक्त कर दिये। शत्रुघन चच्चा के सामने सिद्धार्थ बाबू को ब्यास चाचा का यह व्यंग बिल्कुल अच्छा नहीं लगा और झल्ला कर खड़े हो गये सिद्धार्थ बाबू और बोल पड़े : हे चच्चा! हम जा रहें हैं हो…। पर हा एक बाद याद रखियेगा, हम आपके बात को ऐसे नहीं छोड़ेगे, हम और हमारी युनियन आपके(किसान) हक़ में जरूर लड़ेगी, आपकी दशा जल्द सुधरेगी| जाते जाते सिद्धार्थ बाबू बोल गये।
उनके जाने के बाद से शत्रुघन चच्चा एक आस लगायें हैं कि सिद्धार्थ बोल के गया है हमारे हक़ में लड़ने को, वो लड़ेगा और लड़ेगा भी क्युँ नहीं हमारे गॉव का ही तो। हमें नहीं तो न सहीं… पर हमारे अन्य साथियों (किसानों) को तो हक़ मिल जायेगा ही। पर शत्रुघन चच्चा भूल गये कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता। उधर सिद्धार्थ बाबू को गये तीन साल हो गया, वो सब कुछ भूल कर किसानों का हक़ अपने हक़ में लेने के लिए कागजी लड़ाई लड़ रहे है। शत्रुघन चच्चा की सारी बातें बस एक लाईन में सिमट कर रह गयी : भैंस के आगे बीन बजाओ…….। आज भी शत्रुघन चच्चा उसी किसानी को और मौसमों की मार वाली जिन्दगी को जी रहे है| मन मसोसकर रह गये लोगों की आशाओं और दिलाशाओं से।
हे शत्रुघन चच्चा! अब आप की कोई नहीं सुनेगा, शायद भगवान आयें तो सुन लें, पर इस इंसान रूपी भगवान से तो कभी आशा ही मत रखियेगा। बस अब खुद की ही सुनिये। जय जवान जय किसान वाला उ.. नारा भूलकर अब एक नारा लगाईये… गर हो किसान, तो रहो बलवान।
— अतुल कुमार यादव