लघुकथा – एक ही बात
“छोड़ो न अंजू। हमारे जैसे कई लोग होते हैं जिनके औलाद नहीं होते।अपनी किस्मत में नहीं है संतान-सुख तो क्या कर डालें। अरी अंजू , क्या हम खुश नहीं है क्या? हमारा प्यार एक -दूसरे के लिए काफी नहीं है? मेरे लिए तेरा प्यार ही अनमोल है पगली। मेरी अंजू! तू मेरे लिए पर्याप्त.. पर्याप्त.. और पर्याप्त है”, कहते हुए शिखर ने जब अंजनी को अपनी बाँहों में भर कर माथा चूमा; अंजनी का मुखड़ा लाल हो गया।
अंजनी बहुत खुश थी शिखर के साथ। कोई शिकवा नहीं उनसे। कोई अभाव भी तो नहीं था अंजनी के जीवन में,सिवाय एक संतान। बस इसी बात पर वह हमेशा शिखर से रिक्वेस्ट किया करती थी, और मना भी लिया शिखर को। सुभाष नर्सिंग होम की डाॅ. मधुरिमा साहा से कान्टेक्ट कर टेस्ट ट्यूब बेबी के जरिये उन्हें मिल गया-शुभम। दोनों बहुत खुश थे। पर खुशी जल्द ही चलती बनी। शिखर की बाइक एक्सिडेंट डेथ से अंजनी ने शुभम के लिए स्वयं को बमुश्किल सम्भाला।
जीवन के बीस बरस बीत गये। अंजनी समय से पहले ही बुढ़ी हो गयी। बीमारी भी हाथ धोकर पीछे पड़ गयी। बहुत परेशान थी बेचारी। पुरखों का मकान ही एकमात्र स्थायी पूंजी थी। पति की पेंशन ही आय का स्रोत था। स्वयं का कम पढ़ा-लिखा होना उसे जीवन पर्यंत सालता रहा। अब तो पढ़ें-लिखे बेटे का फक्कड़पन व बेरोजगारी अंजनी को सताये जा रही थी। जवान अन्मैरिड बेटे की अल्हड़ युवतियों से फ्रेंडशिप से बहुत चिंतित थी। हमेशा जान-पहचान वालों से बेटे को कोई काम दिलवाने का जिक्र किया करती थी; और शुभम था मस्त-मौला केयरलेस यूथ।
आज तो शुभम ने हद कर दी। हाॅस्पिटल के जनरल वार्ड के एक बेंच पर बैठी अंजनी मेडिसिन्स को पर्ची से मिला रही थी। तन में तपन थी। साँसें गर्म थी। बैठने का मन नहीं कर रहा था। तभी शुभम आया। कहने लगा- “मम्मी! आप आॅटो से घर चली जाना। मेरे फ्रेंड्स बाहर वेट कर रहे हैं। क्या है कि आज से नवरात्रि शुरू हो रही है, दुर्गा माँ की स्टेच्यू के लिए जाना है। मेरा जाना बहुत जरूरी है मम्मी। नहीं जा पाऊँगा तो माँ दुर्गा नाराज हो जाएगी। ” शुभम चलने लगा । तेजी से डग भरते हुए वार्ड से निकलते बेटे शुभम को देख अंजनी मुस्कुरा रही थी। मन में एक ही बात चल रही थी-” बेटा…! माँ कभी नाराज नहीं होती। ”
— टीकेश्वर सिन्हा ” गब्दीवाला “