शिक्षकों की उपेक्षा क्यों?
भारत प्राचीन समय से ही विश्व गुरु रहा हैं।भारतवर्ष की गुरु शिष्य परंपरा का गुणगान विश्व करता रहा हैं।गुरु,आचार्य,शिक्षक,अध्यापक या टीचर ये शब्द एक ही भाव स्पष्ट करते हैं।गुरु का स्थान समाज में सम्मानीय एवं उच्च होता हैं।गुरु का स्थान माता-पिता के बाद सर्वोपरि हैं।पूरे देश की अगर बात की जाए तो कोई भी ऐसा घर नहीं होगा जिनके घरों,पड़ोसी,मित्र या रिश्तेदार का बच्चा एक छात्र न हो, वह शिक्षा ग्रहण न करता हो।ईश्वर संसार का निर्माण करते हैं तो एक शिक्षक राष्ट्र का निर्माण करते हैं।वह अपने छात्रों को अच्छी शिक्षा देकर देश का भविष्य बनाने में अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं।वह डॉक्टर,वकील,जिलाधिकारी,प्रखंड विकास पदाधिकारी,अंचलाधिकारी आदि अपनी कुशल शिक्षण से बनाने की ताकत रखते हैं।ये वो शक्ति है जो नेता,प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति जैसे पद पर पहुंचाने की क्षमता रखते हैं पर दुर्भाग्य की बात है कि सरकारी शिक्षकों को तरह-तरह के दुर्दशाओं का शिकार होना पड़ा हैं और पड़ रहा हैं।जरा सोचिए एक शिक्षक से जब शिक्षण के अलावा गैर शैक्षणिक कार्य कराए जाएं तो भला किसी भी विद्यार्थी के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या कभी उसका विकास हो पाएगा?विद्यार्थी इस देश की नींव हैं।जिस देश के नींव को ही कमजोर बनाया जा रहा हैं क्या वह दीवार कभी टिक पाएंगी?किसी भी राष्ट्र की सांस्कृतिक,आर्थिक,सामाजिक विकास उस देश की शिक्षा पर ही निर्भर करता हैं।और शिक्षा देने का कार्य शिक्षकगणों का ही हैं।इस प्रकार शिक्षकों से ऐसे कार्य करवाना क्या उचित हैं?ऐसे तमाम प्रश्नों के जवाब तलाशने की शीघ्र आवश्यकता हैं।शिक्षकों से कराए जा चुके और कराए जा रहे गैर शैक्षणिक कार्यो पर एक नजर – चुनाव के दौरान शिक्षकों को चुनावी ड्यूटी करना।पल्स-पोलियो, डेंगू, चिकनगुनिया आदि के क्षेत्र में ड्यूटी करना।मिड-डे-मील अर्थात मध्याह्न भोजन की ड्यूटी।भोजन सही समय पर बना नहीं बना इसका ध्यान रखना।भोजन बन जाने पर छात्रों को खिलाना।एफ.सी.आई गोदाम से अनाज को विद्यालय में लाना।स्कूल भवन बनवाना।बाल गणना, पशु गणना, आर्थिक गणना करना।बैंक में खाता खुलवाने की ड्यूटी करना।बीआरसी से पुस्तक उठाव करना एवं बांटना।बीएलओ की ड्यूटी वोटर कार्ड बनवाना या उसमें सुधार करना।आधार कार्ड बनवाने हेतु लोगों को प्रेरित करना।विभिन्न योजनाओं का प्रतिवेदन तैयार करना और संबंधित विभाग तक पहुंचाना।मतदाता पहचान पत्र बांटना।मतदाता पर्ची बांटना।बच्चों के नामांकन हेतु घर-घर जाकर प्रेरित करना।छात्र क्यों विद्यालय नहीं आ रहे हैं, इसकी जानकारी इकट्ठा करना।नसबंदी के लिए लोगों को जागरूक करना।ड्रेस वितरण करना। विद्यालय का साफ-सफाई, रंगाई-पुताई करवाना। बोर्ड परीक्षा में ड्यूटी करना।राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट करना।लोगों के खुले में शौच से रोकने के लिए सिटी बजाना।शौच के समय फ़ोटो खीचकर शेयर करना।इस तरह के तमाम अनेकों कार्य हैं जो जिला प्रशासन, राज्य सरकार द्वारा शिक्षकों से करवाया जाता हैं।
मध्यप्रदेश में शिक्षकों को विधायक जी की सेवा में लगा दिया गया था। वहां विधायकों को लिपिकीय कार्य के लिए शिक्षकों की सहूलियत दी गई थी। छतीसगढ़ में जन्म-प्रमाण पत्रादि डाटा एकत्र कर राजस्व विभाग को पहुँचाने का जिम्मा मिला था।
कोरोना के दौर में राजस्थान में क्वारन्टीन सेंटरों की निगरानी का जिम्मा शिक्षकों को सौंपा गया।यही नहीं वहां रह रहे लोगों के मनोरंजन की जिम्मेदारी भी शिक्षकों को दे दी गयी।ध्यान देने वाली बात यह है कि अब शिक्षक मनोरंजन करायेंगे क्या? एक तो गैर शैक्षणिक कार्य दूसरे में ऐसा कार्य जो बिल्कुल उलट हो।शादी में सोशल डिस्टेनसिंग का ध्यान रखने एवं मृत्यु भोज रोकने की जिम्मेदारी भी शिक्षकों को मिली।बात यहीं तक नहीं रुकी कुछ दिन पूर्व ही टिड्डियों की परेशानी देश के सामने थी।अब उसको हटाने के लिए उच्चाधिकारियों को कोई नहीं मिला।उनके नियंत्रण और निगरानी के लिए बनी कृषि विभाग की समितियों में शिक्षकों को शामिल कर दिया गया।गुजरात में भी टिड्डियों को भगाने का जिम्मा शिक्षकों को सौंपा गया।हरियाणा सरकार द्वारा परिवार पहचान पत्र बनाने का काम शिक्षकों को सौंपा गया था।पंजाब में शिक्षकों की ड्यूटी अवैध खनन की निगरानी में लगायी गयी थी।यही नहीं शराब फैक्ट्री और डिस्टिलरी में बनाई जा रही शराब की निगरानी और अवैध सप्लाई रोकने के लिए भी शिक्षकों को लगा दिया गया।उन्हें तस्करी रोकने की भी जिम्मेदारी निभाना पड़ा।झारखंड में राशन कार्ड जांच और जन वितरण प्रणाली दुकानों पर रहकर चावल,दाल का बंटवारा सही से कराने और घर-घर जाकर सही कार्ड धारियों का सत्यापन करने का काम शिक्षकों को सौंपा गया था।उत्तर प्रदेश में प्रवासी श्रमिकों की खोज में शिक्षकों की ड्यूटी लगाइ गयीं।शिक्षकों को अपने कार्यस्थल पंचायत में डोर टू डोर जाकर प्रवासी श्रमिकों का ब्यौरा जैसे उनका नाम,पिता नाम,आयु, बैंक खाता विवरण आदि इकट्ठा कर विभाग को भेजने का काम सौंपा गया था।सब तो सब बिहार में शिक्षकों की ड्यूटी जानकर आप सबको हैरानी होगी।उन्हें अपने पंचायत अंतर्गत सुबह-शाम खुले में शौच करने वाले लोगों की निगरानी एवं जो खुले में शौच करते हैं उनकी फोटो खिंचने की ड्यूटी मिली थी।कोरोना के वक्त क्वारन्टीन सेंटर में ड्यूटी में इन्हें दिन-रात नियुक्त किया गया हैं। पर सुरक्षा सामग्री का ध्यान नहीं रखा गया।यहां स्वास्थ विभाग के कर्मियों को 50 लाख का बीमा मिलता हैं।पर शिक्षा विभाग में कोइ सुगबुगाहट नहीं।उन्हें सरकार कोरोना वारियर नहीं मानती।इन सारी बातों से अंदाजा लगाया जा सकता हैं शिक्षक कितने उपेक्षित हैं।
पुरे भारत के लगभग सारे राज्यों के शिक्षकों का हाल यही हैं।इसमें कुछ कार्य संपूर्ण राज्य में न होकर कुछ खास जिले या प्रखंडों में लागू होता हैं।उसका विरोध भी होता हैं। मामला वापस लिया जाता हैं।पर सच्चाई तो यही है जिला प्रशासन या राज्य सरकारों के तरफ से इस पर भविष्य के लिए कोई ध्यान नहीं दिया जाता हैं। समाज के मार्गदर्शक शिक्षकों को हम क्या कार्य सौंप रहे हैं इस पर कोइ ध्यान नहीं होता।अब शिक्षक महोदय करें तो क्या करें,मजबूरीवश सबकुछ करने को बाध्य हो जाना पड़ता हैं।ये शिक्षक जब अपने योग्य काम न देख विरोध करते हैं तो कोइ ध्यान नही दिया जाता।कोर्ट का चक्कर काटने के बाद इन्हें न्याय मिलता हैं।कोर्ट का बार-बार आदेश आता हैं शिक्षकों को गैर शिक्षण कार्य में न लगाया जाए।चुनाव एवं आपदा जैसे स्थिति में इनका सहयोग लिया जा सकता हैं।पर यह आदेश कुछ समय के लिए मान्य होता है।फिर अनदेखी कर,दरकिनार कर दिया जाता हैं।एक बात ध्यान रखना चाहिए संस्कृति,शिक्षा एवं कला नियंत्रण नहीं बल्कि प्रबंधन मांगती हैं।जिस दिन जिला पदाधिकारी यह मानने लगे कि फ़लां विद्यालय का शिक्षक मेरा गुलाम हैं, मुझे प्रणाम करें।शिक्षा मंत्री यह सोचने लगे कि विश्वविद्यालय का कुलपति मेरा गुलाम हैं। उस दिन से शिक्षा एवं कला का अंत होना प्रारंभ हो जाता हैं।
जर्मनी के प्रेसिडेंट के पास एक बार कुछ डॉक्टर व इंजीनियर पहुँचकर शिक्षकों के बराबर वेतन की मांग किये।प्रेसिडेंट ने कहा कि शिक्षक आपको बनाते हैं।हमें बनाते हैं।आपका निर्माण करते हैं।उनके वेतन के बराबर आपका वेतन कैसे हो सकता है?पर भारत में शिक्षकों को अपने वेतन के लिए,अपनी मांगों के लिए भी हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता हैं।
प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को भारत के द्वितीय राष्ट्रपति एवं प्रथम उपराष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता हैं।वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, महान दार्शनिक और शिक्षाविद थे।वे सामाजिक बुराईयों को हटाने के लिए शिक्षा को ही कारगर मानते थे।इस दिन सभी छात्र अपने शिक्षकों के प्रति मान-सम्मान देकर कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।प्रत्येक वर्ष यह दिवस आते ही बधाई एवं शुभकामनाओं का दौर शुरू हो जाता हैं परंतु इस दिवस की वास्तविक सार्थकता में चार चांद लगाने हेतु हमसभी को गुरुजनों के गैर शैक्षणिक कार्यो से मुक्ति हेतु प्रयास करना चाहिए।जब तक सभी मिलकर प्रयास नहीं करेंगे तब तक यह हाल न सुधरनेवाला हैं और न बदलने वाला हैं।छात्रों के हित के लिए राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकार को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए।जिस प्रकार वकील,डॉक्टर,बैंककर्मी आदि कर्मचारी के सिर्फ अपने काम होते हैं ठीक उसी प्रकार शिक्षकों का भी एक काम शिक्षा देना ही होना चाहिए।समाज में उनकी वास्तविक प्रतिष्ठा धूमिल न हो इसका ध्यान रखना चाहिए। इस कड़ी में शिक्षकों को भी प्रयास करना चाहिए कि उन्हें गैर शैक्षणिक कार्यो से छुटकारा मिल पाए।जिस दिन ऐसा हुआ,वास्तव में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और इस देश का भविष्य और प्रबल होगा।
✍🏻 राजीव नंदन मिश्र (नन्हें)