ग़ज़ल
यों दिल में दर्द कोई गहरा है,
आँखों में आँसुओं का पहरा है।
सदियाँ गुज़र गई जाने कितनी,
पलकों पे वक्त बीता ठहरा है।
सुनता न कोई दिल का अफ़साना,
किससे कहें ज़माना बहरा है।
बेचैन तिशनगी का है आलम,
सारा ज़हान लगता सहरा है।
— डॉ रामबहादुर चौधरी ‘चंदन’