कविता

तुम बिन

तुम बिन सूनी सूनी, ये वादियां और ये गलियां।
मिला करती थी जहां,तुम और तेरी सहेलियां ।।
यादें अब भी जगती है,तेरी एक अक्स पाने को ।
सुनने को तरस रहा, तुम्हारी पायल झनकाने को ।।
बेचैन हो के देखता हूं, इन सूनी-सूनी गलियों को ।
दहकते हुए फूलों पर, मुड़झाती हुई कलियों को ।।
सपनों की दुनिया में, हर-सुबह तेरा दिख जाना ।
सुकून देता था कितना, हकीकत में पास आना ।।
थे कितने करीब हम, तेरे पहलू में सफर कटता ।
इस दुनिया से दूर कहीं, जब अपना प्यार पनपता ।।
दीदार को दीवानों सी, बेचैन नजरें ढूंढती है तुझे ।
 जिंदगी थम सी गई हो, जैसे अब लगती है मुझे ।।
ख्वाबों-हकीकत की बातें, मंथन करता रात-दिन ।
सागर में तैरता फरहाद, प्यासा हुआ है तुम बिन  ।।
— अमरजीत कुमार “फरहाद”

अमरजीत कुमार "फरहाद"

सहायक लेखा अधिकारी रक्षा लेखा अपर नियंत्रक कार्यालय, लेखानगर, नासिक - 422009 email - [email protected]