कराके वो बेटी विदा ले गए।
लगा,पूँजी सारी जमा ले गए।।
भले लाख दौलत हो तुम पे मगर
क्या सोने के मुँह में निवाले गए।
किनारे-किनारे चले साथ जो,
हमें संग अपने बहा ले गए।
सदा रहती बोझल सी साँसे मिरी,
हमें ग़म ये किसके दबा ले गए।
पकड़ कर हथेली छुड़ा ली भले,
कहाँ दिल से फिर वो निकाले गए।
नहीं ठीक इतना भी लालच मियाँ।
तलब में सुराही की प्याले गए।।
मुड़ी नर्तकी सी उधर जिंदगी,
जिधर चंद सिक्के उछाले गए
फ़क़त इक तुम्हारी ख़ुशी के लिए ,
हँसी में ये आँसू भी ढाले गए।
किसी ने मदद की किसी ने दुआ,
मुसीबत से हम यूँ निकाले गए।
हटे क्या जरा वो नज़र से मिरी,
निगाहों से जैसे उजाले गए।
पिता माँ की सेवा जो हमने करी।
समझलो करोड़ों कमा ले गए।
गिरेंगे वो ख़ुद पर समझ लीजिए ,
फ़लक पर जो पत्थर उछाले गए।