वैवाहिक जीवन
आदर्श वैवाहिक जीवन वह नहीं,
जो केवल श्रृंगार रस में ही डूबा हो
वास्तविकता में तो,
आदर्श वैवाहिक जीवन वो हैं
जिसमें समस्त रसों का अनुभव हो,
प्रेम में स्वार्थी होना ही नहीं है
अपितु उसकी शाश्वतता के लिए
त्यागी भी होना होता हैं।
एक दूसरे को हर क्षण समझ कर
जो केवल श्रृंगार रस में ही डूबा हो
वास्तविकता में तो,
आदर्श वैवाहिक जीवन वो हैं
जिसमें समस्त रसों का अनुभव हो,
प्रेम में स्वार्थी होना ही नहीं है
अपितु उसकी शाश्वतता के लिए
त्यागी भी होना होता हैं।
एक दूसरे को हर क्षण समझ कर
जीवन निर्वाह करना होता हैं,
वही विवाह सच्चा और सार्थक हैं
जो केवल भौतिक सुखों पर निर्भर ना हो,
आदर्श साथी वही बनते हैं
जो बौद्धिक रूप से भी उच्च के हो,
विवाह वही सार्थक हैं
जो संघर्ष विपत्तियों से गुजरा हो,
जोड़ी उन्हीं की बनती अद्भुत हैं
जिनके विश्वास का शिखर अटल रहता हो,
निष्ठा से साथ निभाते संबध हैं
चाहे कितनी भी विपत्तियाँ और द्वंद आ जाते हो,
चंदा और चकोर सा जिनका तालमेल रहता हैं
सामंजस्य की पराकाष्ठा होती यदी देखो तो,
आदर्श साथी वही बनते हैं
और पाते गृहस्थ जीवन की ‘पूर्णता’ वो
जो साध लेते हैं दोनों मिलकर इस
वही विवाह सच्चा और सार्थक हैं
जो केवल भौतिक सुखों पर निर्भर ना हो,
आदर्श साथी वही बनते हैं
जो बौद्धिक रूप से भी उच्च के हो,
विवाह वही सार्थक हैं
जो संघर्ष विपत्तियों से गुजरा हो,
जोड़ी उन्हीं की बनती अद्भुत हैं
जिनके विश्वास का शिखर अटल रहता हो,
निष्ठा से साथ निभाते संबध हैं
चाहे कितनी भी विपत्तियाँ और द्वंद आ जाते हो,
चंदा और चकोर सा जिनका तालमेल रहता हैं
सामंजस्य की पराकाष्ठा होती यदी देखो तो,
आदर्श साथी वही बनते हैं
और पाते गृहस्थ जीवन की ‘पूर्णता’ वो
जो साध लेते हैं दोनों मिलकर इस
पवित्र बंधन की दिव्यता को,
तभी पूर्ण होती जीवन यात्रा भी और
तभी पूर्ण होती जीवन यात्रा भी और
सार्थक होता उद्देश्य भी,
वैवाहिक जीवन उन्हीं का सफल हैं
जिनका जीवन वास्तविकता,
वैवाहिक जीवन उन्हीं का सफल हैं
जिनका जीवन वास्तविकता,
संघर्ष और प्रेम रूपी
भट्टी में तपा हो।
भट्टी में तपा हो।
— दिव्या सक्सेना