चौराहों पर चुप्पी बैठी, सड़कों पर सुनसान खड़ा।
बेबस होकर माया बैठी, कोने में अभिमान खड़ा।।
समय नहीं था पल भर हमको भागा दौड़ी इतनी थी,
आज समय को काटें कैसे प्रश्न पकड़ कर कान खड़ा।
मुरझाई है राहें तकती, कच्ची केरी पेड़ों पर
सिसक रहा है खेतों में वो, अरसे से जो धान खड़ा।
मंदिर सूने, झीलें सूनी, सूने बाग बगीचे सब,
हर मंजर की आंख भरी है हर मंजर वीरान खड़ा।
उन लम्हों को जीना कितना , मुश्किल होता अब समझे,
होंठो पर जब भय की चुप्पी, सीनों पर तूफ़ान खड़ा।
जाने कितने दिन की हमको कैद मिली है ये “आशा”
जाने कितने दिन की ख़ातिर आकर ये शैतान खड़ा।