कविता

श्री राम हनुमान युद्ध (3)

साथियों नमस्कार ! आज पेश है श्री राम हनुमान युद्ध प्रसंग पर आधारित कविता की अंतिम कड़ी 🙏

श्री राम हनुमान युद्ध (3)

करके नमन पूज्य गुरुवर को
राम ने शर संधान किया
सम्मुख कपि थे ,हाथ जोड़कर
प्रभु को फिर प्रणाम किया
रामनाम का जाप ही करते
कपि ने शीष झुकाया है
सम्मुख जाके तीर भी ठिठका
कपि को भेद न पाया है
करत निरंतर जाप नाम का
हनुमत मन हर्षाये थे
उर में बसती छवि प्रभु की
रोम रोम में समाए थे
कर प्रदक्षिणा तीर कपि का
लौटा प्रभु के तरकश में
विस्मय में थे राम प्रभु जी
मेरा तीर नहीं बस में
किया प्रयोग कुपित होकर
प्रभु ने दिव्य अस्त्रों की माला
पर भेद सका ना कोई कपि को
हर अस्त्र निरर्थक कर डाला
राम नाम के दिव्य कवच का
वलय कपि के चहुँ ओर रचा
हर तीर था बेबस सम्मुख उसके
लेता था कपि को वह बचा
तब क्रोधित होकर प्रभु ने कर
तरकश की तरफ बढ़ाया है
अंतिम प्रयास में रामबाण को
अपने धनुष चढ़ाया है
अब दसों दिशाएं काँप उठी
सुर नर दम साधे देख रहे
जाने क्या होगा अब आगे
अंतिम परिणाम को निरख रहे
भक्त और भगवान के रण का
ना जाने क्या हो अंजाम
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये
लेकर के श्रीराम का नाम
क्यों कहते हैं लोग ……

अब ऐन समय प्रभु ने देखो
अपनी लीला दिखलाई है
गर भक्त सही भगवन झुकता
यह बात हमें बतलाई है
आ पहुँचे विश्वामित्र गुरु
प्रभु को आदेश सुनाया है
अब शीश की मुझको चाह नहीं
तुम वचन मुक्त हो बताया है
अब आशीष दो हनुमत को
और दिव्य अस्त्र को दो आराम
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये
लेकर के श्री राम का नाम
क्यों कहते हैं लोग …..

कोई न जीता ,कोई न हारा
अनुपम दृश्य विलक्षण था
राम के नाम की महिमा न्यारी
सब उसका ही लक्षण था
अद्भुत दृश्य को देख सभी
मन में आनंद विभोर हुए
प्रभु की महिमा गाते गाते
पुष्प वृष्टि चहुँ ओर भए
रवि की चाल भी तेज हुई है
वो निकले अस्ताचल को
सुर ,गंधर्व यक्ष भी निकले
गाथा गाते निज आलय को
गुरु को नमन किया है प्रभु ने
कपि को गले लगाया है
हँसकर बोले भगवन कपि से
तुमने मुझे हराया है
बोले हनुमत हाथ जोड़कर
प्रभु को शीश नवाया है
मैं हूँ अदना सा सेवक तुम
सारे जग के स्वामी हो
बाल न बाँका होए कभी
जो आपका अनुगामी हो
तीर भी उसको छुए कैसे
जिस उर बसे हों प्रभु श्री राम
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये
लेकर के श्री राम का नाम
क्यों कहते हैं लोग …….

राजा ययाति सम्मुख आए
गुरु को शीश नवाया है
अंजाने में हुई गलती है
क्षमा करो दुहराया है
मुझ पापी का पाप तो हर्गिज
करने काबिल माफ नहीं
मुस्काये तब गुरु वर बोले
बात अभी तक साफ नहीं
जाओ तुमको अभय दिया है
हनुमत की भक्ति को नमन
भक्ति भाव सीखो हनुमत से
वश कर लो भगवान का मन
वह पत्थर भी तर जाता है
जिसपर लिखा हो राम का नाम
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये
लेकर के श्री राम का नाम
इस तरह साबित हुआ लोगों
राम से भी बड़ा राम का नाम
इसीलिए कहते हैं लोगों
राम से भी बड़ा राम का नाम
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये ….

🚩🚩जय श्री राम 🚩🚩

राजकुमार कांदु
मौलिक / स्वरचित

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।