हिंदी भाषा को नमन
शीतल व सुन्दर स्वरूप,
कुछ ऐसा है उसका प्रारूप
प्रिय है वो सबकी,
साधारण मनुज हो या भूप
साहित्य और रचनाओं का संगम,
नवीन और प्राचीन का समागम!
भावों से भरपूर, रसों से सम्पूर्ण,
कर्णों के लिए जैसे सुरीली सरगम!
सब मंत्र मुग्ध हो जाते सुनके,
आता परम आनन्द!
केवल प्रयोग मात्र से,
ये अभिव्यक्ति, हो जाती स्वच्छन्द!
प्रेमचंद की कहानियों जैसी
सादी और सरल!
महादेवी वर्मा या दिनकर के
पद्यों जैसी अपूर्व व तरल!
हरिऔध – निराला की रचनाओं
जैसी अतुलनीय व मृदुल!
राष्ट्रभाषा तुम हो हमारी,
गर्व है तुमपर हमें!
अप्रतिम भव्यता है तुम्हारी,
कोटि कोटि नमन है तुम्हें!
— रूना लखनवी