कविता

गुमसुम हो अगर कोई साथी

गुमसुम हो अगर कोई साथी
तो पुकारना जरूर
अपनों से हो जंग
तो हारना जरूर
चुप रह जाए वो अगर
तुम्हारी किसी बात पर
देर मत करना तनिक
माफी मांगना जरूर
रूठ कर कभी वो
मुंह फेर ले अगर
सारे गिले शिकवे छोड़कर
मना लेना जरूर
टूटते हैं दिल अक्सर
बड़ी छोटी सी बात पर
बात से बात अगर निकलने लगे
तुम वहीं थम जाना जरूर
दोस्त मिलते नहीं है दोस्तों
ढूंढने से भी मगर
अगर कोई दोस्त बन जाए तो
गले से लगा लेना जरूर
गुमसुम हो अगर कोई साथी
तो पुकारना जरूर…
— आनंद कृष्ण

आनंद कृष्ण

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