कविता

राष्ट्रभाषा पर बहस चले!

नमस्कार! प्रणाम! हम भूल चले,
हैलो! हाय! बाय! हम बोल चले।
चरण स्पर्श! भूल चले,
आलिंगन को हाथ बढ़े।
संस्कृति को भूल चूकें,
विकृति को बढ़ चले।
पौराणिकता को भूल चले,
आधुनिकता को हाथ बढ़े।
अपव्यय पर हाथ रूके,
मितव्यय पर हाथ बढ़े।
कृत्रिमता को भूल चले,
अकृत्रिमता को बढ़ चले।
सुप्रीमकोर्ट में बहस बेमानी है,
न्याय की चौखट पर,
राष्ट्रभाषा हारी है,
मंजिल अभी बाकी है।
सितम्बर में हिन्दी दिवस मने,
हिन्दी पखवाड़ा विसर्जन बने।
राष्ट्रभाषा पर बहस चले,
हिन्दी पर राजनीति जारी है।
बरुण कुमार सिंह

बरुण कुमार सिंह

लेखक परिचय: बरुण कुमार सिंह शिक्षा: ‘विभिन्न सम्प्रदायवाद एवं राष्ट्रवाद पर शोध’: काशी प्रसाद जयसवाल शोध संस्थान, पटना स्नातकोत्तर (इतिहास): बी. आर. अम्बेदकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा: महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा स्वतंत्र लेखक, विभिन्न पत्र-पत्रिका व वेबपोर्टल के लिए लेखन। पता- 10, पंडित पंत मार्ग नई दिल्ली-110001 मो. 9968126797 ई-मेल: [email protected]