आक्रोश का अंत
चारों तरफ आक्रोश फैल गया था, क्योंकि एक देश के जाने माने कलाकार की हत्या उसकी काबलियत को खत्म करने के लिये किया गया था,मेरे महल्लें में जो लोग अपने आसपास के चेहरे को पहचानते भी नहीं थे,न कभी एक-दूसरे से मिलते-जूलते थे, आज इस घटना की घोर निंदा करते नजर आ रहें थे. वे लोग जो घर के खिड़कियों-दरवाजें को पल-पल बंद करते रहतेंं थे, वे लोग भी झूठे अहंकार में सोशल मिडिया में अपनी पहचान बनाने को बेताब नजर आ रहें थे. घर-घर में लोग रोज चर्चा कर रहें थे और जोर- जोर से इस समाचार को सुनते,गोष्ठीयों का भी आयोजन हो रहा था,लग रहा था कि सबलोग इस घटना से कुछ ज्यादा ही आहत हो गये थे और बहुत ही परेशान नजर आते थे.न्याय हम लेकर रहेंगे, यह नाइन्साफी हैं, यह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता..इन शब्दों का बाढ़ आ गया था. हर कोई सिर्फ इंसाफ चाहता था.
और इसी बीच एक दिन हमारें घर के पास रहने वाले चंदन ने अपनी बहन से छेड़खानी करने वाले को डांट दिया था..वह चार पांच गुण्डे को लेकर उसके घर पहुंच गया था और चंदन को पुरी तरह लहुलुहान कर दिया था…पुलिस भी आई..रपट भी लिखा दी गई.लेकिन कोई गवाह बनकर सामने आने को तैयार नहीं था.
अब सबलोग चुपचाप अपने-अपने घर में दुबक गयें थे,कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही थी ..अब कोई इंसाफ नहीं मांग रहा था..सब खामोश हो गये थे…।।।