बेशर्म आदमी
बेशर्म आदमी! हो तुम,आज यह भी दुनिया ने बोल दिया,
ऐतबार था जिन पर मुझे उन्होने भी राज अपना खोल दिया।
नज़ाकत से कहते है कि सबकी तरह तुम चुप क्यों नही रहते,
निज स्वार्थ मे सबकी तरह मस्त तुम क्यूँ नही रहते?
सच्चाई का आईना तुम सबको क्यों दिखाते हो?
जानते हो? इसलिये तुम पीठ पीछे बहुत कोसे जाते हो।
छोड़ दो जिन्दगी की सच्चाई और यह वसूलो पर चलना,
खाली हाथ रह जाओगे तुम्हे कुछ भी न है फिर मिलना।
सुनता रहा,सहता रहता और अन्त मे सबसे यह कह उठा,
राजा हो या रंक अन्त मे यह भी मिटा और वह भी मिटा।
— अभिषेक शुक्ला