कविता

जीवन एक पहेली

जिंदगी जैसे है एक पहेली,
कैसे  सुलझेगी  ऐ  सहेली।
वीरान  पड़े  हैं  सब  रास्ते,
खड़े   हैं    किसके   वास्ते।
तकदीर तुली  है हराने  को,
हिम्मत जुटी है जिताने को।
अनजान  रास्तों  में भटकी,
चंद    सांसें     हैं   अटकी।
जाने    कब   होगा   सवेरा,
जाने  कब   मिटेगा अंधेरा।
आंखों पर  रात के ये  पहरे,
उजाले की बाट  में हैं ठहरे।
गरजते  आकाश  में बादल,
जैसे   आंखों    में  काजल।
इंतज़ार करतीं उस पल का,
ढल जाएगी ये श्याम चादर।

— डा. शीला चतुर्वेदी ‘शील’

डॉ. शीला चतुर्वेदी 'शील'

प्रधानाध्यापक आदर्श प्राथमिक विद्यालय, बैरौना, देवरिया एक शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए मैं सामाजिक व कई शैक्षिक संगठनों से भी जुड़ी हुई हूं एवं इसके साथ ही एक कुशल गृहणी भी हूं। वर्तमान में (SRG) राज्य संसाधन समूह के पद पर कार्यरत हूँ । शैक्षिक योग्यता- M.Sc., M.Phil(Physics), B.Ed, Ph.D. साहित्य में भी रुचि रखती हूँ।