जीवन एक पहेली
जिंदगी जैसे है एक पहेली,
कैसे सुलझेगी ऐ सहेली।
वीरान पड़े हैं सब रास्ते,
खड़े हैं किसके वास्ते।
तकदीर तुली है हराने को,
हिम्मत जुटी है जिताने को।
अनजान रास्तों में भटकी,
चंद सांसें हैं अटकी।
जाने कब होगा सवेरा,
जाने कब मिटेगा अंधेरा।
आंखों पर रात के ये पहरे,
उजाले की बाट में हैं ठहरे।
गरजते आकाश में बादल,
जैसे आंखों में काजल।
इंतज़ार करतीं उस पल का,
ढल जाएगी ये श्याम चादर।
— डा. शीला चतुर्वेदी ‘शील’