कविता

हिन्दी

हिन्दी जब सहज भाव से बहती,
हिंदोस्ताँ की संस्कृति संग में चलती।

सभ्यता संस्कृति की प्रतीक है,
सरल अभिव्यक्ति की संगीत है।

एकता का पाठ हमें पढ़ाती है,
एक सूत्र में राष्ट्र को बांधती है।

हिन्दी है मृदु भावों का सागर,
भरी है इसमें अपनत्व की गागर।

आधुनिक युग के इस दौर में,
खो रही है हिन्दी, अंग्रेजी शोर में।

आओ ! सब मिलकर दे सम्मान,
करें अब निज भाषा का उत्थान।

जब होंगे हिन्दी के प्रति हम सजग,
तब राष्ट्रभाषा को मानेगा सारा जग।

नवनीत शुक्ल

शिक्षक/सम्पादक रायबरेली-उत्तर प्रदेश मो.न.- 9451231908 शिक्षक