राष्ट्रीय जलजीव:गांगेय डाल्फिन
भारत सरकार ने सन 2005 में गांगेय डाल्फिन को भारतीय गणराज्य का राष्ट्रीय जलजीव घोषित किया ।
गांगेय डाल्फिन दक्षिण पूर्व एशिया की नदियों मे पायी जाने वाली डाल्फिन की दो प्रजातियों में से एक है ।इसकी दूसरी प्रजाति को सिंधु डाल्फिन कहते हैं ,सिंधु डाल्फिन मुख्यतया पाकिस्तान की सिंधु एवं इसकी सहायक नदियों में पायी जाती है।
जबकि गांगेय डाल्फिन गंगा ,ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों में पायी जाती है । गंगा डाल्फिन भारत ,नेपाल,बांग्लादेश की नदियों मे पाई जाती है । डाल्फिन के जैव वर्गीकरण की बात करें तो डाल्फिन वर्ग स्तनपायी के गण सिटेशिया की सदस्य है ,अर्थात गांगेय डाल्फिन व्हेल और समुद्री डाल्फिन की नजदीकी रिश्तेदार है । परंतु यह व्हेल की तरह शाकाहारी नही होती यह मछलियों का शिकार करती है ।गांगेय डाल्फिन का वैज्ञानिक नाम “प्लाटानिस्टा गैंगेटिका” है ।
यह एक स्तनधारी जीव है, इसका गर्भधारण काल ,8-12महीना होता , मादा गांगेय डाल्फिन एक बार में एक बच्चे को जन्म देती है और उन्हे दूध भी पिलाती है ।दस साल की आयु आते आते इनके शिशुओं में वयस्कता आ जाती है ,गांगेय डाल्फिन की औसत आयु 28 साल होती है ।
यह पानी के अंदर साँस नही ले सकती इसलिए इसे हर एक से दो मिनट के अंतराल पर पानी की सतह पर आना पड़ता है ,और यह जब श्वाँस छोड़ती है तो इसके एकल नासाद्वार से निकली हवा पानी के साथ सूँ..या सों..की आवाज निकालती है और शायद इसी आवाज के कारण उत्तर प्रदेश तथा में इसे सूंस या सोंस आदि नामों से जाना जाता है ।गांगेय डाल्फिन की आँखे अल्पविकसित होती है अतः यह देख नही सकती ,यह ईकोलोकेशन के द्वारा शिकार को पकड़ती है एवं जल में स्थित अन्य चीजों को समझती हैं तथा इनमें एक ही नासाछिद्र होता है ।गांगेय डाल्फिन प्रजनन काल को छोड़कर सामान्यतया एकाकी रहना पसंद करती हैं तथा यह गहरे एवं अपेक्षाकृत कम बहाव वाली जगहों पर जहाँ शिकार प्रचुरता से मिलता है वहाँ रहना पसंद करती हैं।गांगेय डाल्फिन के भोजन में मुख्यतया मछलियाँ ही शामिल होती हैं, मगर कभी कभी यह झींगा,कछुए, एवं जलीय पक्षियों का भी शिकार करती है ।
गांगेय डाल्फिन का रंग भैंस की तरह भूरा होता है ,किंतु इनके एल्बिनो का रंग गुलाबी भी हो सकता है।
गांगेय डाल्फिन भारतीय वन्यजीव अधिनियम के तहत एक संरक्षित जीव है तथा एक लुप्तप्राय प्रजाति है ,इसको राष्ट्रीय जलजीव घोषित किये जाने से पहले इसकी जनसंख्या बहुत ही कम हो गई थी ,क्योंकि जगह जगह नदियों पर बनाये गये बाँध इनके रास्ते की बाधा बन चुके है ,जिस कारण यह प्रजनन काल में उचित साथी नही तलाश कर पाती थी और इनका शिकार भी किया जाता रहा है जिससे भी इसकी संख्या काफी कम हो गई थी।परंतु इनके संरक्षण की दिशा में उठाये गये कदम सराहनीय और सकारात्मक रहे हैं, बिहार प्रांत में गंगा डाल्फिन के संरक्षण हेतु विक्रमशिला गंगा डाल्फिन जल अभयारण्य भी है ,वन्यजीव प्रेमी एवं तमाम संस्थाएँ लोगों को इनकें सरक्षण हेतु जागरुक बना रही हैं।
इसके संरक्षण और जनजागरूकता के ही कारण गंगा,यमुना,ब्रह्मपुत्र ,सरयू,घाघरा,सतलज,एवं इनकी सहायक नदियों में गांगेय डाल्फिन के तमाम कुनबे फल फूल रहे हैं।