राजनीति

मिशन कर्मयोगी : सिविल सेवा सुधार और मोदी सरकार

आखिरकार वही हुआ जिसका अंदेशा था। देश के इस्पाती चौखट माने जाने वाली सिविल सर्विसेज में सुधार की हरी झंडी मोदी सरकार ने दे दी । राष्ट्रीय  सिविल सेवा क्षमता विकास कार्यक्रम का नामकरण भी “मिशन कर्मयोगी ”  कर दिया गया । इसके तहत सरकारी अधिकारियों को काम को ज्यादा बेहतर और उपादेयी तरीके से करने का प्रशिक्षण  दिया जाएगा। यह सामयिक एवं अच्छी पहल है। क्योंकि ब्यूरोक्रेसी का रोल समाज एवं देश के विकास में अहम होता है।  इन्हें सरकार का  आंख और कान कहा जाता है। क्योंकि एक लोक कल्याणकारी राज्य में  नीति – निर्माण  से लेकर नीति – क्रियान्वयन तक इनकी ही भूमिका होती है । इसलिए  रूल- टू – रोल का भी नया माॅडल आ रहा हैl आना भी चाहिए । क्योंकि अक्सर ये शिकायतें सुनने में आती है कि अधिकारियों की उदासीनता और गलत रवैय्या के कारण आम लोग परेशान हैं। उनके तामझाम और पावर के भय से वह कुछ कहने से भी हिचकते हैं ।
लेकिन सवाल मौंजूं है कि नियमों और कानूनों  में बंधी ब्यूरोक्रेसी आखिर सुधरेगी भी तो किस हद तक ? सत्यनिष्ठा, कर्त्तव्यनिष्ठा, नैतिकता, संविधान और संविधानवाद की शपथ लेकर ये आते हैं तो फिर कार्यावधि के दौरान पारदर्शिता और अपनी जवाबदेहिता से क्यों मुहं फेरते दिखते हैं ? क्या राजनीतिक दवाब और हस्तक्षेप  ब्यूरोक्रेसी के स्टील – फ्रेम में जंग नहीं लगा दी है? दरअसल इन नौकरशाहों के सेवाओं  का आकलन , उत्कृष्टता और प्रमोशन राजनीतिक गलियारे से होकर गुजरती है इसलिए ऐसे में शत -प्रतिशत ईमानदारी, निष्पक्षता और जन केन्द्रित सेवाभाव की उम्मीद  बेमानी ही लगती है? गौरतलब तो है कि खुद डाॅ.धर्मवीर आयोग , संथानम कमिटी ने भी माना था कि जो नौकरशाह नेताओं  की चोंच में चोंच मिलाते रहते हैं वह खूब तरक्की पाते हैं और जो नहीं मिलाते हैं उनपर निरन्तर शो-काऊज , तबादला और  अपमान का तलवार लटकते रहता है। मेरे भी अनुभव कहते हैं कि किसी भी सरकार के लिए यह अहम कदम होता है कि वह अपने “बाबू वर्ग” में ऐसे गुण और सोच उत्पन्न  करे कि उन्हें  भविष्य के लिए जिम्मेदार बनाया जाए।ऐसे में कल्पनाशीलता , नवाचार ,सक्रियता और पेशेवर तथा पारदर्शी  होने की जरूर है ।इसके लिए बाबू वर्ग को ईमानदार रचनात्मक, पारदर्शी,जन केन्द्रित सोच और  तकनीकी होना होगा ।यह सब ठीक और कारगर तभी होगी जब पाॅलिटिकल इंटरफेरेंस से ब्यूरोक्रेसी  को दूर रखा जाएगा । दरअसल  पाॅलिटिकल इंटरफेरेंस के कारण न केवल नौकरशाही की साख गिरी है अपितु संविधान और संविधानवाद  भी प्रभावित हुआ है । आज कई   ऐसे नौकरशाह हैं जो निरपेक्ष और निष्पक्ष होकर काम करने के बजाय राजनीतिक दल के लिए काम करते हैं ताकि भविष्य  में उनके लिए राजनीति , संसद और विधानसभा का दरवाजा खुला रहे। और ऐसा मौजूदा राजनीति में दिख भी रहा है । जब तक नेक्सस न टूटेगा तब तक सुधार एक यक्ष प्रश्न  ही बना रहेगा।
—  डाॅ. हर्ष वर्द्धन 

डॉ. हर्ष वर्द्धन

शिक्षाविद् कदमकुआं पटना बिहार मो. 6200053644 संप्रति- उप-निदेशक टीचर्स ट्रेनिंग कालेज पटना बिहार