लघुकथा

लघुकथा- नाॅन खटाई

मम्मी ….आज तो मैं  सोच ही ली हूँ ….मैं  उसे मना ही कर दूंगी….रोज-रोज  मेरी गली न आया करे। तभी गली के नुक्कड़ से तेज आवाज…..आइये …आइये गरमा-गरम ……..मेरठ की मशहूर-स्वादिष्ट  नाॅन-खटाई बिस्कुट आ गयी ……बच्चों का दिलखुश बिस्कुट ….जी न ललचाए …मुन्ने की बात मानिये….
 तभी मिट्ठू …मम्मी देखो न…आ गयी नाॅन-खटाई आज ज्यादा खरीदना l
मम्मी …तेज आवाज में …भैया रोज-रोज मत आया करो,मेरा बच्चा रोता है , तुम्हारे नाॅन-खटाई के लिए…
उसने झट से …. मैडम जी …अगर  आपका बेटा नाॅन-खटाई  के लिए न रोयेगा… तो मेरा बेटा-बेटी रोटी के लिए रोयेगा ..कहता वह अपनी ठेला बढ़ाने लगा। शिक्षिका मम्मी  …आवाक हो सोचते रह गई …कितने साफगोई से  उसने अपनी बात कह दी ….मैं उसे क्या समझाती वह मुझे ही शिक्षा दे  ….
—   डाॅ. हर्ष वर्द्धन 

डॉ. हर्ष वर्द्धन

शिक्षाविद् कदमकुआं पटना बिहार मो. 6200053644 संप्रति- उप-निदेशक टीचर्स ट्रेनिंग कालेज पटना बिहार