जीवन के रंग रूप कई हैं,
कही छावं तो धूप कही हैं।
दोलत , शोहरत, रिश्ते, नाते ‘
यही से गड़ते नेह के धागे।
मगर गाँठ जब पड़ जाति हैं,
दूरिया अक्सर बढ़ जाति हैं।
आसान नही हैं, सहेजे रखना,
माला टूट कर गिर जाति हैं।
यहाँ पड़ाव बढ़े जटिल हैं,
ख्वाबों से लबरेज यह दिल है।
मकान से घर का सफर बड़ा हैं ,
किसने येह षड्यंत्र रचा हैं।
इतना भी मुश्किल नही हैं,
दिल को भाए वही सही हैं।
अगर साथ हो कोई जो अपना,
नही अधूरा फिर कोई सपना।
जीवन के रंग रूप कई हैं,
कही छावं तो धूप कहीं है।।
— फातेमा