विविध

प्रेम-: एक अहसास

माता-पिता, आचार्य, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री, पत्नी, मित्र, पेड़-पोधौ, जानवरों से या फिर पालतू पशुओं से लगाव ही प्रेम है। प्रेम व्यक्ति कि ऐसी भावना है,जो उसे व्यक्ति से व्यक्ति को मिलाकर अपनत्व को स्थापित करता है। परन्तु वर्तमान में प्रेम को कई व्यक्ति नकारात्मक रूप में लेते है,जो कि प्रेम का न तो आस्वादन कर पाते हैं और न ही किसी अन्य को करने देना चाहते, प्रेम संकुचित न होकर अत्यंत ही विस्तृत है, जिसकी पूर्ण व्याख्या कर पाना संभव नहीं है। प्रेम व्यक्ति की एक मुख्य भावना है। व्यक्ति विशेष से लगाव को उत्पन्न करने कि अद्भुत क्षमता प्रदान करता है।

प्रेम एक अहसास है, जो व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़कर उसे प्रेम नामक भावना से परिपूर्ण करता है, इसका सकारात्मक रूप व्यक्ति की सोच को अत्यंत ही विस्तृत और उत्कर्ष बना देती है। प्रेम व्यक्ति में नैतिक मूल्यों को स्थापित कर सकता है और अनैतिक भी, परन्तु यह सब उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह प्रेम को किस प्रकार ग्रहण करता है। प्रेम व्यक्ति की स्वार्थहीन व्यंजना है, जिसमें व्यक्ति पूर्ण रूप से प्रेम से रूबरू हो जाता है। प्रेम असीम,अथाह,अतुल्य होता है, इसलिए प्रेम को एक ही अर्थ में लेना सर्वदा अनुचित है, प्रेम अत्यंत ही विस्तारित है, जिसको शब्दों में समझ पाना अत्यंत ही मुश्किल है।

प्रेम को सात्विक अर्थ में लेने वाला व्यक्ति अत्यंत ही उत्कृष्ट विचारों वाला होने के साथ-साथ वह अत्यंत नम्रता युक्त एवं स्वार्थहीन होता है।

प्रेम परस्पर आत्मा का आत्मा से मिलन है, अर्थात व्यक्ति अन्य व्यक्ति के विचारों भावनाओं को समझने लगता है, के व्यक्ति की दिव्यता है, प्रेम व्यक्ति को सुगंधमय पुष्प की तरह हर जगह उत्कृष्टता प्रदान करता है, सटीक अर्थ में प्रेम, ममता और वात्सल्य का पर्याय है। प्रेम व्यक्ति की आत्मा से होता है ना की देह से, अर्थात देह से होने वाला, प्रेम; प्रेम नहीं कहा जा सकता वह स्वार्थ से परिपूर्ण आकर्षण होता है-

व्यक्ति की निस्वार्थ भक्ति है, प्रेम

आत्मा का मिलन है, प्रेम

व्यक्ति का अस्तित्व है प्रेम

विश्वास का दूसरा रूप है प्रेम।।

 

दिनेश प्रजापत

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