ग़ज़ल
दूर मुझसे बहुत खुशी है अभी
रूठी रूठी सी ज़िन्दगी है अभी
हर तरफ देख तीरगी है अभी
बाँटना तुझको रौशनी है अभी
जानलेवा वबा है कोरोना
जी रहा डरके आदमी है अभी
छोड़ तू शय बुरी सियासत है
शर्म थोड़ी अगर बची है अभी
मेरी इस जिंदगी में लगता है
इक भले दोस्त की कमी है अभी
देखना है अभी तो ये दुन्या
मेरी आंखें तो बस खुली है अभी
मत उड़ा तू मजाक मेरा श्लेष
ज़िन्दगी मुझपे हँस रही है अभी
— श्लेष चन्द्राकर