पंक्षी
सुबह उड़ते-उड़ते पंक्षी बोले,
प्यारे बच्चों क्या हाल-चाल हैं।
सुबह से तुम लिखते रहते हो,
सचमुच सब बच्चे कमाल हैं।।
बच्चों कुछ लिखो हमारे बारे में भी,
हम कठिन दौर से गुजर रहे हैं।
हमकों खाना कहाँ मिलेगा अब,
धरा पर मानव जंगल काट रहे हैं।।
तोता मैना चिड़िया कोयल सारे,
इसी सोंच में हम सब हैं भारी।
मानव हमारा घर उजाड़ रहा,
आखिर क्या गलती थी हमारी?
जब न होंगे इस धरा पर जंगल,
कहाँ होगा फिर बसेरा हमारा?
बच्चों तुम सबको यह समझाना,
न होंगे पेड़, तो न होगा जहाँ हमारा।।
रचयिता
नवनीत शुक्ल(शिक्षक)
प्रा० वि० भैरवां द्वितीय, हसवा, फतेहपुर
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