भारत में हिंदी भाषा की वर्तमान स्थिति और आगे इसका भविष्य
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, यह तो हर व्यक्ति जानता ही होगा! मध्यांतर में इसने अपना अस्तित्व ही खो दिया था। आज फिर से कुछ लोगों के अथक परिश्रम से इसको सर उठाकर चलने का मौक़ा मिला है। हिंदी अगर आगे बढ़ी है और बढ़ रही है तो वो साहित्य व लेखन के माध्यम से। इसको आगे बढ़ाने में मीडिया, अख़बार, पत्रिकाओं, चैनलों, धारावाहिकों और फ़िल्मों की बहुत बड़ी भूमिका रही है।
भारत माता की बिंदी कहलाने वाली यह भाषा आज़ भारत को विश्व में एक अलग पहचान दिलाने में जुटी हुई है। कोरोना काल में तो इसने अपना प्रभुत्व जमा लिया है जो इसी भाँति आगे भी जारी रहेगा। अगर हर भारतीय इसी प्रकार कदम से कदम मिलाकर चलता रहा!
सोशल मीडिया से तो इसका इतना प्रचार हो रहा है मानों! लगता है कि हर व्यक्ति इसको पहचानता है। हमने दोनों भाषाओं में ज्ञान प्राप्त किया क्योंकि बच्चों को अंग्रेज़ी में ही पढ़ाना होता था और आज की माँग भी यही थी। बाद में बच्चों को धीरे-धीरे हिंदी में समझाना शुरू किया और देखा कि उन्हें जल्दी समझ में आ रहा है। वे पहले से बेहतर परिणाम लाने में सफल हुए हैं।
यूँ तो साहित्यकार इसके चिंतन-मनन का दायित्व निभा रहे हैं पर मेरा मानना है कि जब तक हर कोई इसके प्रति अपना दायित्व नहीं निभाएगा, तब तक यह पूरे भारत में नहीं आ पाएगी। इसलिए हम सबको आगे बढकर अपने वतन की खोई पहचान को आगे बढ़ाना है।
कोई भी भाषा अपनी सृजनात्मकता और साथ-साथ संस्थाओं की भूमिका के कारण आगे बढ़ती है। केंद्र सरकार ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कई संस्थाएँ बना रखी हैं। अब वे इस पर कितना काम कर रहीं हैं यह तो वक़्त ही बतायेगा।
अंत में बस इतना ही कहना चाहूँगी कि हम सबको मिलकर अपनी मातृभाषा को आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए क्योंकि हम सब हिंदुस्तानी हैं और हिंदी हमारी पहचान है। तो क्यों नहीं? आज से ही इसपर काम शुरू करते हैं।
जय हिंदी जय भारत
मौलिक आलेख
नूतन गर्ग (दिल्ली)