लघुकथा

शिक्षक से जुड़ा होता है, विद्यार्थी का बचपन का कोना |

सपना का लड़का अयांश अब एक साल का हो गया था| उसके जन्मदिन का न्योता हमे भी मिला था| मैं और मेरी बहन साक्षी हम दोनों अयांश के लिए कुछ तोहफा लेने दुकान गए थे|

अब एक साल के बच्चे के लिए खिलौनें से बेहतर कोई तोहफा हो सकता है? हम दोनों दूकान के खिलौनें वाले काउंटर के पास जाकर खिलौना देखने लगे| हमने खिलौना पसंद कर लिया और हम काउंटर से बाजु हो गए| तभी हम दोनों की नजर सामनेवाले काउंटर पर खड़ी महिला पे पड़ी|

मैंने उन्हें देखते ही पहचान लिया वो मेरे बचपन की टीचर थी| उनका नाम वैद्य मैडम था| शायद मैं तब तीसरी कक्षा में और मेरी बहन पहली कक्षा में होंगी,तब वो हमे पढ़ाती थी| हम दोनों जब बिल देने दूकान के कॅश काउंटर के पास जा रहे थे, तब मैंने उनसे बात की “मैडम आप वैद्य मैडम होना, वही जो इंदिरा गाँधी कन्या विद्यालय में पढ़ाती थी”?

उन्होंने “हाँ” ऐसा जवाब दिया| मैंने उनसे कहा “हम आपके विद्यार्थी है”| उन्होंने झट से पूछा “क्या कर रही हो तुम अभी”? मैंने जवाब दिया “फिटर हूँ” फिर बोली “सरनेम क्या है तुम्हारा”? मैंने मेरा सरनेम उनको बता दिया| उन्होंने मुझसे कहा सॉरी बेटा सरनेम याद नहीं रहते| मैंने कहा “कोई बात नहीं, अब वह आठ-दस साल पुराणी बात है”|

मेरे इस शब्द का वह जवाब देते हुए बोली “इतनी पुराणी बात तुम्हें कैसे ध्यान में रही”? फिर मैंने जवाब में कहा “कोई अपनी टीचर को नहीं भुलता| वह टीचर जिसके पास एक विद्यार्थी पूरा सालभर पढ़ा हो, वह टीचर जिसके साथ बचपन के किसी कोने की यादें जुड़ी हो, उन्हें भला कोई कैसे भुल सकता है”| तब उस वैद्य मैडम के नजरों में जो चमक थी वह किसी भी अमूल्य खुशी से कम तुलनीय नहीं थी| एक शिक्षक भले ही भुल जाए विद्यार्थी को लेकिन एक विद्यार्थी कभी नहीं भुलता अपने शिक्षक को|

अंकुशा बुलकुंडे

फिटर नागपुर ,महाराष्ट्र 440027 मोबाइल नं - 9307177031