लगता है कि तुम है* *
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सुबह सबेरे चिडिया जब चहकती है,
सूर्य की किरण धरती जब आती है,
वर्षा की फुहार जब पडती है
तब ऐसा लगता है कि तुम हो।
पर्वत से कोई झरना गिरता है
फूलों पर कोई भौरा गुनगुनाता है,
आसमान में इन्द्र धनुष जब दिखती है
तब ऐसा लगता है कि तुम हो।
सर्दियों में गुनगुनी धूप जब होती है,
खेतो में लहलहाती फसल होती है,
सावन में पपीहे की चहकती आवाज
तब ऐसा लगता है कि तुम हो।
पहाड़ो के तलहटी में दौडती नदी
देवदार के घने जंगलों के बीच,
पूनम की खिली चांदनी जब होती है
तब ऐसा लगता है कि तुम हो।
गौ धूलि के समय गाये आंगन में आती
किसान अपनी फसलों को काटता है,
माली बाग में पौधों को पानी देता है
तब ऐसा लगता है कि तुम हो।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड