मिलन अब हमारा तुम्हारा न होगा
बहुत दूर मुझ से बसी हो विरागिन,
मिलन अब हमारा तुम्हारा न होगा।
किसी दिन तुम्हीं रुप सी बन खडी़ थी,
किसी दिन मिलन की घड़ी ही घड़ी थी,
विहँसती हुई कर ठिठोली नजर से,
तुम्हें देख कर मैं मगन नाचता हूँ ,
तुम्हें तो खुदा की विभा मानता था,
मगर भाग्य मेरा छला जब गया है,
तो जीवन में कोई सहारा न होगा।
नये स्वर सजाकर पपीहा न बोले,
कहाँ तक निहारुँ नयन रोज खोले,
नया गीत गाता नये स्वर बनाता,
तुम्हें देखकर मैं विकल हो बुलाता,
मगर छोड़कर राह मेरी गई तुम,
किया छल न जाने कहाँ हो गई तुम,
चलूँगा निरन्तर तुम्हें याद करके,
तृषित कण्ठ , पर,जल फुहारा न होगा।
*********************कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड