ग्रामीण महिलाओं की आय का साधन हिमाचली बड़ी व्यवसाय
वैसे तो अनेक प्रकार के पकवान हिमाचल प्रदेश के हर जिले में बनाए व खाए जाते हैं लेकिन उड़द की पिट्टी से बनाए गए पकवानों की बात ही निराली है। जहां अन्य दालें व सब्जियां ताजी ही खाने में अच्छी लगती है वहीं मण्डी-सुकेत क्षेत्र में उड़द की बड़ियों के पकवान साल भर बड़े चाव से बनाए व खाए जाते हैं। इन बड़ियों को बनाने की अलग-अलग विधियां हैं। अलग-अलग विधियों से बनाई गई बड़ियों के नाम भी अलग अलग हैं। लीजिए आप भी बनाइए कभी ना खराब होने वाली बड़ियां।धुली उड़द को रात भर पानी में भिगोकर इसका छिलका ढीला पड़ जाता है।
अब दोनों हाथों से इस दाल को मसलकर छीलका अलग कर दिया जाता है। फिर दाल को लकड़ी से बनी टोकरियों में तब तक रखा जाता है जब तक कि सारा पानी अलग ना हो जाए। इसमें आवश्यकतानुसार मसाले मिलाकर इसे पत्थर की सील पर बट्टे से या दाल पीसने की मशीन में बारीक पीस लें।इसी पिसी हुई दाल के विभिन्न प्रकार की बड़ियां बनाकर धूप में 4- 5 दिनों तक अच्छी तरह से सुखाकर वर्षभर मर्तबान में सुरक्षित रखा जा सकता है।”डांघलू”व “बरैन्दडी” बड़ी (अरबी और कचालू के डंठल पर पीसी दाल की परत चढ़ाकर फिर धूप में सुखाकर व चाकू से काटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बनी बड़ियां)।इसी तरह खटी बड़ियां बनाने से पूर्व उड़द की दाल में अरबी की ज्रीस व चने की दाल पांचवाँ भाग मिलाकर आवश्यकतानुसार मिर्च-मसाले मिलाकर इस मिश्रण को बारीक पीसने के बाद एक बाल्टी या टब में रखकर चार-पांच दिनों तक किसी छत या सुरक्षित स्थान पर ढककर रख देते हैं।हर रोज एक बार हाथ से इसे अच्छी तरह गूँगा हैं।
इस अवधि में दाल का स्वाद खट्टा हो जाता है।अब इस दाल को पुनः हाथ से हिलाडुला कर धूप वाले स्थान पर ले जाएं। समतल स्थान पर एक चादर बिछाकर दाल के मिश्रण की छोटी-छोटी पेड़ियां बनाकर 5-7 दिनों तक सुखाकर मर्तवान में सुरक्षित रख लें। जब भी खट्टी बड़ियां बनानी हो तो आवश्यकतानुसार उचित मात्रा में बड़ियां लेकर कूटकर छोटे-छोटे टुकड़े बना लें।अब थोड़ा सा तेल या घी कड़ाह में लेकर इसे भूरा होने तक तल कर अलग रख लें।अब थोड़ा तेल कड़ाह में डालकर बारीक कटा हुआ प्याज,अदरक,नमक,मिर्च,हल्दी, गरम मसाला आदि आवश्यकतानुसार डालकर भून लें।जब यह मसाला अच्छी तरह भून जाए तब खट्टी बड़ियों के भूने चूरे को इस में डालकर अच्छी तरह मिला लें।इसमें अधिक खटास के लिए दही या लस्सी,नमक डालकर उबालकर व पकाकर नीचे उतारकर रख लें। बस भोजन के रुप में पौष्टिक स्वादिष्ट खट्टी बड़ी की सब्जी तैयार है। उड़द की दाल के बिना खमीरी करण के केवल भिगोकर व नमक, मिर्च, मसाले मिलाकर महीन पीसकर मसाले की बड़ियाँ,गोभी,पेठे की बड़ियाँ,सेपू बड़ियाँ आदि बनाकर सुखाकर प्रयोग में लाई जाती है। उड़द की दाल की ताजी बड़ियाँ,बल्ले सीमित समय में बनाकर रूचिकर व्यंजन के रूप में विशेष त्योहारों, उत्सवों व विशेष अवसरों पर परोसने अतिथियों का विशेष स्वागत का प्रतीक है। उड़द की दाल की विभिन्न प्रकार की बड़ियाँ ग्रामीण महिलाओं में अच्छी आय का साधन भी बन रही हैं।सेना व मसाले वाली बड़ियाँ तो शहरी क्षेत्रों में बहुत लाभदायक व्यवसाय के रूप में उभर रही हैं। उड़द में एलव्यूमिनाज 22.7%,स्टार्च 55.8%,तैल 2.2%,सूत्र 4.8%तथा क्षार 4.4% होता है। उड़द व्याधियों संधिवात,पक्षाघात,अरुचि,बिवन्ध, उदरशूल,मूत्रकृच्छ,दौर्वल्य,रजो रोध,स्तन्यालप्ता आदि में भी उपयोगी है।पांगणा गांव की आशा शर्मा और कमलेश शर्मा का कहना है कि नाग पंचमी और ऋषि पंचमी में विशेषतः अरबी या क चालू के डंठल पर पीसी दाल की पर्त चढ़ाकर इसकी पूजा-अर्चना कर बड़ियाँ डालने का मुहूर्त किया जाता है।ताकि पितृपक्ष में भी बड़ियाँ डाली जा सके। सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जनकल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाक्टर हिमेन्द्र बाली हिम,पुरातत्व चेतना संघ मंडी द्वारा पुरातत्व चेतना राज्य पुरस्कार से सम्मानित डाक्टर जगदीश शर्मा और समाज सेवी सुमित गुप्ता का कहना है कि भौतिकता की अंधी दौड़ में बड़ियाँ डालने की यह समृद्ध परंपरा भी समाप्ति के कगार पर पहुंच गई है।करसोग क्षेत्र में सुभाषपालेकर प्राकृतिक खेती की जिला सलाहकार लीना शर्मा का कहना है कि आज जबकि रासायनिक खादों व कीटनाशकों से प्रभावित सब्जियां बाजारों में उपलब्ध हैं और स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डाल रही हैं ऐसे में उड़द की विभिन्न प्रकार की बड़ियाँ जहाँ स्वास्थ्य के लिए उपयोगी हैं वहीं घर में इन्हें बनाकर हम अपनी समृद्ध संस्कृति को अक्षुण्ण भी रख सकेंगे।
— राज शर्मा