बनना है निर्विकार
उच्च शिखर था लक्ष्य, समय था निष्पक्ष,
देह था क्लान्त, और मन था अशान्त!
ताप था प्रचण्ड, पथ था दुर्गम,
वहाँ था एकान्त, सबकुछ था शान्त!
अवस्था थी जर्जर, वस्तुएँ थी कृत्रिम,
किसका था प्रकोप, अन्याय था या आरोप!
न हो कोई निष्कर्ष, न ही हो प्रतिउत्तर,
एकाग्रता की दरकार, व बनना है निर्विकार!
— रूना लखनवी