व्यंग्य – जीवन में धक्के का महत्व
मनुष्य तन सौभाग्य से मिलता है और मनुष्य तन में धक्का परम सौभाग्य से मिलता है।जीवन जीने के लिए प्राणवायु की आवश्यकता होती है।ठीक इसी तरह जीवन में आगे बढ़ने के लिए धक्के की जरूरत होती है।हालांकि बदलते समय में धक्के के मायने बदल गए,एक सर्वे के मुताबिक सर्वाधिक धक्के आगे बढ़ाने के लिए नहीं अपितु पीछे धकेलने या गिराने के लिए दिए जाते हैं।धक्कम-धक्काई की यह परम्परा सदियों पुरानी है।ऐसे मनुष्य विरले ही मिलेंगे जिन्होंने जीवन में धक्का ना खाया हो…।धक्के का महत्व राष्ट्र व्यापी नही अपितु विश्व व्यापी है।वैसे धक्का शब्द सुनते ही हम सब को भरी हुई सरकारी बस,ट्रेनों की याद आ जाती है।बस या ट्रेन के दरवाजे पर पैर टिकाने की जगह मिल जाए तो आदमी को पता नहीं चल पाता की धक्कों की विशेष कृपा से कब बस या ट्रेन के अंदर खड़े मिलते हैं।मुझे याद है जीवन में पहली बार धक्का तब खाया था जब शुरुआती दिनों में बीएसएनएल की सिम खरीदने लाईन में लगा था।लात घूँसों की अपार कृपा बरसी थी हम पर,फिर भी सिम नहीं मिल पाई,तो मन को धक्का लगा।आज के दौर में ज्यादातर धक्का,धक्का-मुक्की फिर लात घूँसों में बदल जाता है।धक्के लगने का अपना अलग सुख भी है।स्कूल कालेज में किसी लड़के का धक्का किसी लड़की को लग जाए तो परिणाम सुखद या दुखद दोनों मिल सकते हैं।मामला ‘शौरी’ शब्द से पट गया तो ठीक,,वरना कभी-कभी खामियाजा शादी तक जा पहुंचता है।वैसे शादी तो ऐसी रस्म है जिसमें धक्के तो नहीं होते लेकिन शादी के भंवरजाल में फंसकर सारी उम्र धक्के खाने पड़ते हैं।जैसे पत्नी का नाम राशन कार्ड में चढ़वाने के लिए सरकारी दफ्तर के धक्के, बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र के लिए अस्पताल के धक्के,फिर बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल के धक्के।फिर बच्चों की नौकरी लगवाने के लिए जोर आजमाईश धक्के।जीवन के बचे हुए दिन में धक्का मारने की जिम्मेदारी को आफिस के अधिकारी या बाबू बखूबी निभा देते हैं।रिटायर होने के बाद घर बैठी निकम्मी संतान के धक्के।पेंशन कापी बनवाने और बैंक से वृद्धा पेंशन पाने के लिए धक्के।बीमारी के दौरान इलाज के लिए अस्पताल में डाक्टर्स के धक्के, बीमारी से बच गये तो ठीक वरना फिर यमराज के धक्के । ये धक्के शमशान में भी पीछा नहीं छोड़ते मरने के बाद मुखाग्नि देने के बाद कुछ लोग लंबे बांस की लकड़ी लेकर मुस्तैद खड़े रहते हैं कि कहीं कोई शरीर का अंग जलने से शेष ना रह जाए फौरन धक्का देकर आग के हवाले करते हैं।अत: धक्के के बिना जीवन अधूरा है, जीवन की कल्पना धक्के के बिना अधूरी है।इसलिए जीवन में जितना भी धक्का मिले उसे हंसते हुए झेलते जाएं जीवन में बढ़ते जाएं धक्का दें और खुद भी खाते जाएं, आजादी के बाद से अपना वतन भी धक्के पर धक्के खाकर आगे बढ़ रहा है,यदि आपने जीवन में धक्का नही खाया है तो आज ही खाएं।
— आशीष तिवारी निर्मल