द्रुपदसुताओं अस्त्र गहो
सत्तासीन नैन खो दे तो, दुःशासन बौरायेंगे।
द्रुपदसुताओ अस्त्र गहो ,अब केशव फिर न आयेंगे।
गर नर दनुज सरीखा हो तो, ममतामयी रूप छोड़ो।
बुरी नजर गर देखे कोई ,बाज बनो ,आँखे फोड़ो ।
कब तक दानव जैसे मानव ,तुमको जिंदा खायेंगे ?
द्रुपदसुताओं अस्त्र गहो ……………………….
यह सोता समाज उठ बैठे,तुम ऐसी हुंकार करो ।
बहुत हुआ अब रणचंडी बन ,रक्त पियो, संहार करो ।
नहीं, दनुज हर ओर पाप के यह किस्से दुहरायेंगे।
द्रुपदसुताओं अस्त्र गहो……………………
कब तक चीरहरण होगा ,तुम हर दिन मारी जाओगी?
नही बनी गर रणचंडी, चोपड़ में हारी जाओगी ।
कब तक नर अपनी तृष्णा में ,तुमको दाँव लगायेंगे?
द्रुपदसुताओं अस्त्र गहो ……………………
गर मृगनयनी बनी रही तुम,हिंसक पशु खा जायेंगे।
बनी सुकोमल पुष्प सरिस तो,छलिया भौरें आयेंगे।
बनो हुतासन सरिस सभी निशचर निश्चय जल जायेंगे।
द्रुपदसुताओं अस्त्र गहो……………………
————© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी