गीत/नवगीत

प्राणाधार

स्वार्थ  लोलुप मानव  देखो, कैसे तुमको हैं काट रहे।
अपने ही पतन  को  देखो,  अब भी नहीं हैं भाँप रहे।।
प्रदूषण के विकराल दानव,  तभी तो उनको हैं ग्रास रहे।
सदियों ही से तुमने तो, उसको जीवन के उपहार दिए।।
जाने कितने ही कवियों के, महाकाव्यों को आकार दिए।
यमुनातट के कदम्ब हुए, कान्हा का लीला-स्थल हुए।।
पंचवटी निर्मित कर,माँ सीता के सतीत्व के रक्षक बने।
स्वार्थी मानवों की  कुटियों के भी तुम स्तंभ  बने।।
कला संस्कृति के नाम,कलाकृति हो दीवारों पर रहे टंगे।
बाल्य लालसाओं की खातिर तुमने कितने आकर लिए।।
जीवन ने जब झटके हाथ,हो सवार तुम्हीं पर चल दिए।
इतना ही नहीं था काफी, संग तुम धू-धू करके जल दिए।।
हे! कान्हा के कदम्ब तुम, और वट सावित्री के वट तुम।
हो प्राणदायिनी वायु के दाता औ जीवन के  केवट तुम।।
देवदार स्तम्भ का पा अवलम्ब संस्कृति पल्ल्वित  हुई।
किन्तु विडम्बना कि ये तुम्हारे सारे ही ऋण भूल गई।।
तुम आश्रय हो,आशय हो, तुम मेरे जीवन के प्राणाधार।
हो धरा का सुकोमल आँचल,माँ ने ज्यों दिया पसार।।
विहगों का तुम आश्रय-स्थल,कवि-कल्पना का आकार।
हे! वृक्ष तुम जीवन दाता, हो मेरे इन प्राणों का आधार।।
तुम ही से होता आया,जीवन सहस्त्र सदियों से साकार।
तुम ही तो हो देते आए, जीवन को प्राणवायु का सार।।
— ज्योति अग्निहोत्री ‘नित्या’

ज्योति अग्निहोत्री

माता का नाम: श्रीमती अशोक कुमारी चौबे पिता का नाम:श्री एम. लाल चौबे पति का नाम:श्री धीरज अग्निहोत्री स्थाई पता: श्री हरिविष्णुपुरम, महेरा फाटक इटावा, उत्तर प्रदेश फ़ोन नम्बर:8439671659; 9219116003 जन्म तिथि:14 जुलाई 1979 शिक्षा: बी. ए. (प्रतिष्ठा)इतिहास, मैत्रेयी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, .एम. ए.(हिन्दी),चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय बी. एड., डॉ. भीमरावअम्बेडकर विश्वविद्यालय पी. जी. डिप्लोमा अनुवाद (हिन्दी-अंग्रेज़ीऔर अंग्रेज़ी-हिन्दी), नॉर्थ कैम्पस, दिल्ली विश्वविद्यालय व्यवसाय: शिक्षक, सहायक अध्यापक, बेसिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश प्रकाशन विवरण: ऑनलाइन प्रकाशन:स्टोरी मिरर-39 कविताएं; प्रतिलिपि-13 कविताएं एवं 3 लघुकथा साहित्यिक पत्रिका नारी शक्ति सागर: में "भीष्म नहीं तुम कृष्ण बनो" माही संदेश पत्रिका, जयपुर, राजस्थान ;हम हिन्दुस्तानी न्यूयॉर्क अमेरिका से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र; घूँघट की बगावत, गोरखपुर से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र आदि में कई कविताएं प्रकाशित।