विज्ञान

दो महिला वैज्ञानिकों को रसायन का नोबेल

इस साल रसायन के नोबेल पुरस्कार के लिए दो महिला वैज्ञानिकों को चुना गया है। उन्होंने आनुवंशिक रोगों और यहां तक कि कैंसर के उपचार में भविष्य में मददगार साबित होने वाली जीनोम एडिटिंग की एक पद्धति विकसित की है। स्टॉकहोम में स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने यह प्रतिष्ठित पुरस्कार फ्रांस की विज्ञानी इमैनुएल शारपेंतिए और अमेरिका की जेनिफर डाउडना को दिये जाने की घोषणा की है।यह पहला मौका है जब रसायन विज्ञान के क्षेत्र में दो महिलाओं को एक साथ दो महिलाओं को एक साथ रसायन का नोबेल पुरस्कार मिला है।
नोबेल पुरस्कार के तहत एक स्वर्ण पदक और पुरस्कार की राशि के रूप में 10.1 लाख डॉलर से अधिक नकद राशि दी जाती है। मुद्रास्फीति के मद्देनजर पुरस्कार की राशि हाल ही में बढ़ाई गई थी। इसे जेनेटिक सीजर्स का नाम दिया गया है। इससे पहले अब तक पांच महिलाओं को केमिस्ट्री के लिए नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। मैरी क्यूरी एकमात्र ऐसी महिला हैं जिन्हें फिजिक्स और केमिस्ट्री दोनों के लिए नोबेल पुरस्कार मिला है।
नोबेल ज्यूरी ने कहा, इनके प्रयोग से शोधकर्ता जानवरों, पौधों और सूक्ष्मजीवों के डीएनए को अत्यधिक उच्च परिशुद्धता के साथ बदल सकते हैं। इस तकनीक का जीवन विज्ञान पर एक क्रांतिकारी प्रभाव पड़ा है। यह न केवल नए कैंसर उपचार में योगदान कर रहा है बल्कि विरासत में मिली बीमारियों के इलाज के सपने को सच कर सकता है। नोबेल ज्यूरी के चेयरपर्सन क्लेस गुस्ताफसन ने इसे मानव जाति के लिए एक महान तोहफा बताया है। हालांकि उन्होंने इसे सावधानी से इस्तेमाल करने की नसीहत भी दी।उन्होंने कहा कि नतीजतन, आनुवंशिक क्षति को दुरूस्त करने के लिये कोई भी जीनोम अब संपादित किया जा सकता है। यह इनोवेशन मानवता को बड़े अवसर प्रदान करेगा।
पुरस्कार की घोषणा होने पर बर्लिन से फोन पर चारपेंटियर (51) ने कहा, मैं बहुत भावुक हो गई। रसायन विज्ञान के क्षेत्र में पहली बार दो महिलाओं को एक साथ नोबेल पुरस्कार के लिये चुने जाने के तथ्य के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो वह खुद को एक वैज्ञानिक समझती हैं और उन्हें उम्मीद है कि वह अन्य लोगों को भी प्रेरित करेंगी। उन्होंने कहा, मैं कामना करती हूं कि विज्ञान के रास्ते पर चलने वाली युवा लड़कियों के लिये यह एक सकारात्मक संदेश देगा। डॉडना ने इस पुरस्कार के लिये चुने जाने पर कहा, मुझे सचमुच में यह मिला गया, मैं स्तब्ध हूं। मुझे पूरी उम्मीद है कि इसका उपयोग भलाई के लिये होगा, जीव विज्ञान में नये रहस्यों पर से पर्दा हटाने में होगा और मानव जाति को लाभ पहुंचाने के लिये होगा।
दोनों महिला विज्ञानियों ने अहम टूल सीआरआइएसपीआर-सीएएस को विकसित किया है। उल्लेखनीय है कि जीनोम एडिटिंग प्रौद्योगिकी पर पेटेंट को लेकर हार्वर्ड के द ब्रॉड इंस्टीट्यूट और एमआईटी के बीच लंबी अदालती लड़ाई चली है और कई अन्य वैज्ञानिकों ने भी इस प्रौद्योगिकी पर महत्वपूर्ण कार्य किया है। जीनोम एडिटिंग एक ऐसी पद्धति है, जिसके जरिये वैज्ञानिक जीव-जंतु के डीएनए में बदलाव करते हैं। यह प्रौद्योगिकी एक कैंची की तरह काम करती है, जो डीएनए को किसी खास स्थान से काटती है। इसके बाद वैज्ञानिक उस स्थान से डीएनए के काटे गये हिस्से को बदलते हैं। इससे रोगों के उपचार में मदद मिलती है। जीनोम एडिटिंग को आनुवंशिक संशोधन या आनुवंशिक इंजीनियरिंग भी कहा जाता है।जीनोम एडिटिंग प्रौद्योगिकियों का एक समूह है जो वैज्ञानिकों को किसी जीव के डीएनए को बदलने की क्षमता प्रदान करता है। ये प्रौद्योगिकियाँ जीनोम में विशेष स्थानों पर आनुवंशिक सामग्री को जोड़ने, हटाने या बदलने में सहायक होती हैं।

दरअसल, जीनोम एडिटिंग को लेकर विज्ञानी समुदाय पिछले काफी समय से नैतिक सवालों से जूझ रहा है। वर्ष 2018 में ही सीआरआइएसपीआर के बारे में अधिकांश लोग जान गए थे, जब चीनी विज्ञानी डॉ. ही जियानकुई ने दुनिया को बताया था कि उन्होंने दुनिया के पहले जीन-एडिटेड शिशुओं को बनाने में मदद की थी। हालांकि उनके काम को मानव सभ्यता के लिए उपयुक्त नहीं माना गया। बाद में विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय पैनल ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि फिलहाल जीन एडिटेड शिशुओं को बनाना जल्दबाजी होगी क्योंकि विज्ञान अभी भी पर्याप्त उन्नत नहीं है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक विशेषज्ञ सलाहकार समिति ने ह्यूमन जीनोम एडिटिंग पर शोध की निगरानी करने के लिये वैश्विक पंजीकरण शुरू करने हेतु पहले चरण को मंजूरी दी है।इस पहल का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी व्यवस्था द्वारा जीन आधारित उपचारों से संबंधित नई प्रौद्योगिकियों की नैतिक और विनियामक चुनौतियों की पहचान करना है।समिति की अनुशंसा को स्वीकार करते हुए ॅविश्व स्वास्थ्य संगठन ने अंतर्राष्ट्रीय नैदानिक परीक्षण पंजीकरण मंच का उपयोग कर पंजीकरण के प्रारंभिक चरण की घोषणा की। इस चरण में शारीरिक और जर्मलाइन (ळमतउसपदम) संबंधी नैदानिक परीक्षणों को शामिल किया गया है।
इस पंजीकरण को उद्देश्यपूर्ण बनाने और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिये इसमें हितधारकों को भी शामिल किया जाएगा।
समिति ने सभी संबंधित अनुसंधान और विकास पहलों को अपने परीक्षणों को पंजीकृत करवाने के दिशा-निर्देश दिये हैं।ह्यूमन जीनोम एडिटिंग के लिये एक वैश्विक शासन ढाँचे के विकास हेतु यह समिति ऑनलाइन और व्यक्तिगत दोनों प्रकार से परामर्श देने का कार्य करेगी।नई जीनोम एडिटिंग तकनीक लाईलाज बीमारियों के उपचार में उपयोगी है, परंतु इस तकनीक से नैतिक, सामाजिक, नियामक और तकनीकी चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं।

— निरंकार सिंह

निरंकार सिंह

लेखक हिन्दी विश्वकोष के सहायक संपादक रह चुके हैं। आज कल स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य कर रहे हैं। ए-13, विधायक निवास 6 पार्क रोड कालोनी, लखनऊ-226001 मो. 09451910615