लघुकथा

लघु कथा – काश बेटी होती

चूल्हे में आग फूंकते समय 77 साल की बूढ़ी आंखो में धुंआ तेजी से लग रहा था। रामधन की आवाज निकलती हैं। हाय राम काश बेटी होती!
सुंदरपुर गांव में रास्ते में जाते हुए मुरली ने पूछा। क्या हुआ दादा जी ? आप ये सब क्या कर रहे हैं ? क्या आपके दोनों बेटों की बहुएं अपने मायके चली गई है ?
लम्बी सांस लेते हुए रामधन दादा बोले सब परिवार घर पर ही है। फिर काहे कूं तुम रोटी बनाए रहें हौ। ये बात सुनकर रामधन की आंखो में से आंसु छलक पड़े। पूरा गांव जानता है कि मेरे पास बाईस एकड़ ज़मीन है। साथ में दो बेटे हैं, दोनों ने शादी के बाद अपनी-अपनी अलग राह बना ली है। आज से नौ साल पहले शामली की मृत्यु के बाद दोनों लड़कों में से रोटी देने की तो अलग बात है। बोलते तक भी नहीं है।
मैने क्या नहीं किया इनके लिए, मेरे पिताजी मेरे पास केवल ग्यारह एकड़ जमीन  छोड़ कर गए थे। अब मैने इनको दुगनी करके दी व साथ ही आलीशान मकान बनवाने के बावजूद इस झोपड़-पट्टी में रहना पड़ रहा है
अपनी क़िस्मत को कोसते हुए रामधन बोल पड़ा।
 इन बेटों से तो बिना बेटों के ही भला! जो कि दो-दो बेटे होने के बावजूद भी मेरी यह हालत है।
काश!आज मेरे घर में एक बेटी होती तो मुझे ये सब दिन देखने नहीं पड़ते। बेटी घर की लक्ष्मी ही नहीं बल्कि दो परिवारों की भाग्य विधाता होती है। एक पल में ही घर के सारे काम निपटा देती हैं। वो भी बिना किसी लालच के।
ये सब बात सुनकर मुरली उदास होकर कहता है। हर घर में बेटा हो या ना हो लेकिन बेटी होना बहुत जरूरी है। जिस घर में बिटियां होती हैं उनका पिता राजा होता है। और साथ में सारे संसार की खुशियां उनके ही घर में होती है। आखिर बेटियों के बिना सारा संसार अधूरा होता है।
 काश रामधन के घर में बेटी होती…
— अवधेश कुमार निषाद मझवार

अवधेश कुमार निषाद मझवार

ग्राम पूठपुरा पोस्ट उझावली फतेहाबाद आगरा(उत्तर प्रदेश) M-.8057338804