तुम आना प्रिये
तुम आना प्रिये! अब की बार,
बनकर दीपक मेरे सूने आँगन में।
दिन-मास मेरा प्रतिकुल रहा,
सच धीमा बीता यह साल।
नींद गयी मेरा चैन गया,
सच मैं आज हुआ बदहाल।
रिक्त पड़ी मेरे हृदय की देहरी,
औ एक सूनापन मेरे जीवन में।
तुम आना प्रिये!….
नहीं रही पहले जैसी,
पूनम की वो निराली रात।
आई बन घन अंधेरी,
अमावस की वो काली रात।
लुप्त सा हुआ एक पहचाना बिम्ब,
आज दीवार पर टंगे दरपन से।
तुम आना प्रिये!….
अधपकी धान की बालियाँ,
तुम्हें कुछ याद दिलाती होगी।
खेली हुई वो अठखेलियाँ,
तुम्हें भी कुछ सताती होगी।
भूल न जाना, तुम्हें याद रहे कि,
तनिक दाग न लगे मेरे दामन में।
तुम आना प्रिये!….
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”