कविता

साथ तुम्हारा

अच्छा लगता है तुम्हारा साथ,
साथ न होते हो फिर भी साथ हो,

शब्द मेरे होते नही है फिर भी,
उनको सुनते लेते तुम कैसे हो ,

हर बात को नजाकत को तुम ,
जाने कैसे समझ जाते तुम हो,

कैसा रिश्ता है यह हमारा तुम्हारा,
जो नही होते हुए कुछ भी बहुत कुछ हो ।

आँखे बोलती है अब तो हमेशा ,
उनको भी सुन लेते तुम सरलता से हो,

संग जो लम्हे मेरे संग बिताते हो,
उनको कैसे समय से चुराते तुम हो,

जैसे भी हो तुम अकड़ू ,खड़ूस,
खुद को सिर्फ मेरा ही कहते हो ।।।

डॉ सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।