साथ तुम्हारा
अच्छा लगता है तुम्हारा साथ,
साथ न होते हो फिर भी साथ हो,
शब्द मेरे होते नही है फिर भी,
उनको सुनते लेते तुम कैसे हो ,
हर बात को नजाकत को तुम ,
जाने कैसे समझ जाते तुम हो,
कैसा रिश्ता है यह हमारा तुम्हारा,
जो नही होते हुए कुछ भी बहुत कुछ हो ।
आँखे बोलती है अब तो हमेशा ,
उनको भी सुन लेते तुम सरलता से हो,
संग जो लम्हे मेरे संग बिताते हो,
उनको कैसे समय से चुराते तुम हो,
जैसे भी हो तुम अकड़ू ,खड़ूस,
खुद को सिर्फ मेरा ही कहते हो ।।।
डॉ सारिका औदिच्य