कविता

कदम और गुनाह

कदम दर कदम चलते रहे
छोड गये पाँव अपनी परछाई
गुनाह दिमाग करता रहा
सहारा पाँव देते रहे
छिपने को मिला न कोई खण्डहर
खुद से ही छिपता रहा
चहरा छुपा लिया कफन में
फिर भी खुद से डरता रहा
दफन हो गया कब्र में
फिर भी गुनाह सामने खडा़ रहा
मौत इंसान की हो गई
सबूत हमेशा जिन्दा रहा
सब से छिपा लिया खुद को
खुद से न छिपा रहा

— शिखा सिंह

शिखा सिंह

जन्मस्थल - कायमगंज स्नातकोत्तर- के.एन.कालेज कासगंज. प्रकाशन- विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में आलेख एवं कविताएँ प्रकाशित जैसे - लखनऊ से, उत्कर्ष, लखनऊ से रेवान्त पत्रिका ,जनसंदेश टाईम्सअखबार,अग्रधारा पत्रिका, अनुराग ,अनवरत, कविता संग्रह, भोजपुरी पंचायत, लोक चिंतक कवि हम - तुम कविता संग्रह और अन्य पत्रिकाओं में भी प्रकाशित सृजन पोर्टल दिल्दी बुलेटिन पोर्टल अन्य !! सम्पर्क-जे .एन.वी.रोड़ फतेहगढ़ फर्रुखाबाद (उ प्र,) पिन कोड- 209601 e-mail [email protected]