कदम और गुनाह
कदम दर कदम चलते रहे
छोड गये पाँव अपनी परछाई
गुनाह दिमाग करता रहा
सहारा पाँव देते रहे
छिपने को मिला न कोई खण्डहर
खुद से ही छिपता रहा
चहरा छुपा लिया कफन में
फिर भी खुद से डरता रहा
दफन हो गया कब्र में
फिर भी गुनाह सामने खडा़ रहा
मौत इंसान की हो गई
सबूत हमेशा जिन्दा रहा
सब से छिपा लिया खुद को
खुद से न छिपा रहा
— शिखा सिंह