जीवन
जीवन का ये पथ कुछ विचित्र है,
कभी ये लगता ममतामयी मर्म स्पर्श है!
कभी दृढ़ और सशक्त बन,
सारी चुनौतियों को झेलता सहर्ष है!
नरंतर बदलाव एवं समय की अनुकूलता
से बनती उसकी परिभाषा उत्कर्ष है!
कभी मीठे स्वप्न की तरह लगता,
कभी लगता एक अत्यंत कठोर संघर्ष है!
स्मृतियाँ का आकर्षण व अनुकर्षन भी
अपने आप में एक उबड़ खाबड़ फर्श है!
सहेज कर रखने पर भी,
इन वस्तुओं से न निकलता कोई निष्कर्ष है!
कुछ बुद्धिजीवी बनते हितैषी,
पर साथ निभाते समय केवल देते परामर्श हैं!
विभिन्न प्रकार के मानवों से साक्षात्कार
बनाता इस जीवन रुपी चित्र को दर्श है!
— रूना लखनवी