बाबा – दादी
आज बाबा के घुटनों में दर्द था,
क्योंकि मौसम थोड़ा सर्द था!
उन्होंने पड़ोस वाले काका को बुलाया,
बस वही तो उनका हमदर्द था!
दादी की तबियत भी कुछ खराब थी,
उनको आशा थी एक जवाब की!
अपनी शर्तों पे जीती थी वो,
उनको न आदत थी किसी दबाव की!
आँखें नम और मन दोनों का उदास था,
किसको बताएँ, कोई भी न उनके पास था!
वृद्ध शरीर और अकेलापन था बस,
न कोई आम था और न कोई ख़ास था!
गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार था उन्हें,
साल भर के अंतराल के बाद मिले जिन्हें!
एकटक दरवाजे पर नज़र टिकी रहती,
और हमारे आने की ख़बर के, वे दिन गिने!
~ रूना लखनवी