मेरी ग़ज़लों को आवाज दे दो
सुनो अपना दिल मुझको उधार दे दो ,
तुम पर ग़ज़ल कहूँ मैं थोड़ा प्यार दे दो!
संग-संग हंसे और संग-संग रोंए दोनों
मुझे भी अपने सुघर नेह की धार दे दो!
सिवा तुम्हारे ना किसी का जिक्र करूँ मैं,
अपनी चाहतों का अब ऐसा खुमार दे दो!
है मुश्किल काम मोहब्बत को निभा पाना
मैं कर लूंगा ये काम भी,तुम ऐतबार दे दो!
एक – दूसरे का हमसाया बनकर रहें हम,
मेरी ग़ज़लों को आवाज तुम एक बार दे दो!
— आशीष तिवारी निर्मल